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________________ आभूषणोंरो भूषित पद्मावतीको पुरुषके वेशमें सज्जित कर दिया । इस तरह मब प्रकारकी तैयारीके पश्चात् दन्तिवाहन भूपतिने रानीको मदोन्मत्त हाथीके आगे बैठाया और स्वयं उसके पीछे बंट गया तथा नगरकी प्रदक्षिणा करने लगा। पद्मावती और दन्तिवाहन महाराज नगरको प्रदक्षिणा कर ही रहे थे कि राजाका नियमित्र बाद नामक एक बिधाका आया और उसने विद्यावलसे आकाशमें गर्जना करता हुआ एक मेघ तेयार किया । विद्याधरके प्रभावसे सुगन्धित जलकी वर्षा होने लगी और मन्द-मन्द वायु प्रवाहित होने लगी। इधर नर्मदातिलक हाथोने ज्यों ही आकाशमें छाये हए और जलकण बरसाते हुए मेघोंको देखा और दिशाओंको मुगन्धिन करनेवाली सुन्धित वायुको सुंघा तो उसे अपने चिरवसित और वृक्षमालासे अलंकृत विन्ध्याचलके शल्लकी बनकी स्मृति हो उठी और वह बलवान् हाथी जनसमूहकं देखते-देखते ही नगरसे अटवीकी ओर चल दिया। __ इस प्रकार इस कथा में पद्मावतीको पूर्वभावावलि तथा उसके जन्मको कथा आयी है, जो करकण्डकथा में अन्यत्र नहीं मिलती। ____ इस ग्रन्थमें 'उक्तञ्च' कहकर प्राकृत गाथाएँ भी सम्मिलित की गयी हैं । डॉ० ए० एन० उपाध्येका अभिमत है कि इस कथाकोशका एक अंश सम्भवतः किसी प्राकृत ग्रन्थसे संस्कृतमें अनूदित किया गया है । यतः इस ग्रन्थमें बहुतसे प्राकृत नाम भी अपने मूलरूपमें पाये जाते हैं । यथा—मेतार्यके स्थानपर मेदज्ज और वाराणसीके स्थानपर बाणारसी प्रयोग पाये जाते हैं। प्रस्तुत कथाकोश अनेक जैनाख्यानोंको विकासपरम्पराको अवगत करनेमें बहुत ही सहायक है । लेखकने इसमें अनेक आख्यानोंके पूर्वजन्मवृत्तान्त विस्तारसे दिये हैं। अत: अनेक काव्योंके स्रोतोंका परिज्ञान इस कथाकोशको कथाओंसे प्राप्त किया जा सकता है। इस कथाकोषमें कामशास्त्र, आयुर्वेद, ज्योतिष, शकून, दर्शन आदि विभिन्न विषयोंका वर्णन आया है। पंचपापोंका सुन्दर विश्लेषण किया गया है । आचार सम्बन्धो अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य भी इस कथामें समाविष्ट हैं। चारुदत्तकथानकमें आया है कि यज्ञमें हवन किये जानेवाला पशु कहता है-- नाह स्वर्गफलोपभोगतृषितो नाभ्यर्थितस्त्वं मया संतुष्टस्तृणभक्षणेन सततं साधो न युक्तं तव । स्वर्ग गन्तुमभीप्सिता यदि भवेद् वेदे च तथ्या श्रुतिः भूपे कि न करोषि मातृपितृभिर्दारान् सुतान् बान्धवान् । १. बृहत् कथाफोश, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, पृ. २२५, पद्य २४८ । प्रमुखाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ६९
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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