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मुरकी सेनाको परास्त किया । अनन्तर वह द्वारिकामं मायावती के साथ गया और वहां भी उसने मायाके कारण चमत्कार उत्पन्न किये। इस समय नारव वहाँ आये और प्रद्युम्नका परिचय कराया ।
set प्रकारका विष्णुपुराणके पञ्चम स्कन्धके २६वे और २७ अध्यायम प्रद्युम्नचरित उपलब्ध होता है। श्रीमद्भागवन और विष्णुपुराणके चरितमें प्रायः ममानता है । अन्तर केवल इतना ही है कि शम्बासुर प्रद्युम्नको विष्णुपुराणके अनुसार जन्म लेनेके छठे दिन ही समुद्र में गिरा देता है। शेष कथानक दोनों ग्रन्थोंमें समान है ।
'प्रद्युम्नचरितम्' महाकाव्यकी कथावस्तुकी उक्त दोनो ग्रंथोंकी कथा बग्नुके साथ तुलना करनेपर निम्नांकित साम्य और असाम्य उपलब्ध होते हैं
साम्य
| १ | प्रद्युम्न श्रीकृष्ण और रुक्मिणीव पुत्र थे ।
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(२) जन्मकी छठी रात्रि अथवा दश दिनके पूर्व ही असुर द्वारा अपहरण | | ३) नारद ऋषि द्वारा रुक्मिणीको समस्त स्थिनिकी जानकारी | (४) द्वारिकामें प्रद्युम्न के लौटने पर नारद द्वारा प्रद्युम्नका परिचय |
असाम्य
प्रद्युम्नका शम्बासुर द्वारा अपहरण उसका समुद्र में डाला जाना समुद्रम मत्स्य द्वारा निगला जाना और फिर यम्बासुरकं घर जाकर मत्स्यकं पेटगे जीवित निकलना, मायावतीका मोहित होना और वालक प्रद्युम्नका पालन करना तथा अन्त में युवा होनेपर शम्बासुरको मारकर मायावतीसे विवाह करना ।
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यदि उपयुक्त असमताओं पर विचार किया जाये, तो जात होगा कि जैनलेखकोंने उक्त कथांशोंमें अपनी सुविधानुसार परिवर्तन कर उसे बुद्धिह्य बनाया है । प्रद्युम्नको समुद्रमें न डलवाकर गुफामे अथवा शिलाकं नीचे रखवाना अधिक बुद्धिसंगत है। मत्स्यके पेट मे जीवित निकलनेकी सम्भावना बहुत कम है, जबकि शिलातल या गुफामें जीवित रह जानेकी सम्भावना में आशंका नहीं की जा सकती । अम्यासुरके स्थानपर धूमकेतु अपहरण करनेवाला कल्पित किया गया है तथा कालसंवर विद्याधर उसका पालन करनेवाला माना गया है । कालसंवरकी पत्नी कचनमाला भी मायावती के समान 'प्रद्युम्न' पर मोहित होती है। कालसंवर पत्नी के अपमानका बदला चुकानेक लिये प्रद्युम्नको मार डालना चाहता है। मायावती जिस प्रकार प्रद्युम्नको विद्या सिखलाती है उसी प्रकार कंचनमाला भी । जेन -लेखकोंने जन्म-जन्मान्तरक आख्यान
६२ तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा