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________________ जोड़कर प्रत्येक घटनाको तर्कपूर्ण बनानेका प्रयास किया है। उन्होंने यह दिखलाया है कि वर्तमान जीवन प्रत्येक पूर्वजन्मके संचित संस्कार कार्य करते हैं । धूमकेतुने पूर्वजन्मको शत्रुताके कारण ही प्रद्युम्नका अपहरण किया था और कंचनमाला भी पूर्वजन्मके प्रेमके कारण ही, प्रद्युम्नपर आसक्त होती है । गम्ब उसका पूर्वजन्मका भाई होनेसे ही प्रेम करता है। कथावस्तुका गठन और महाकाव्यत्व प्रस्तुत महाकाव्यका कथानक शृङ्खलाबद्ध एवं सुगठित है । क्रमनियोजन पूर्णतया पाया जाता है । मभी कथानक शृङ्खलाकी छोटी-छोटी कड़ियों समान परस्पर सम्बद्ध हैं । प्रद्युम्नचरितमें कथानकका उद्घाटन सत्यभामा द्वारा नारदको असतुष्ट करने और ईर्ष्याांव नारदका सुन्दरीकी तलाशमें जाने एवं रुक्मिणीके हृदय में श्रीकृष्णके प्रति अनुराग उत्पन्न करनेसे होता है । कथावस्तुकी पंखुड़ियाँ सहमें खुलती हुई अपना पराग और सौरभ विकीर्ण कर मुग्ध करती हैं । सत्यभामा और रुक्मिणी में मपत्नीभावका उदय द्वंद्व और शमन कई बार होता हुआ दिखलाया गया है। इस प्रकार कविने कथानकोंकी योजना शृङ्खलाबद्ध कर मनोरंजकताका समावेश किया है। काव्य प्रवाहको स्थिर एवं प्रभावोत्पादक बनाये रखनेके लिये अवान्तर कथाएँ भी गुम्फित हैं। रचना सरस और रोचक है । हरिषेण हरिषेण नामके कई आचार्य हुए हैं। डॉ० ए० एन० उपाध्येने छह हरिषेण नामके ग्रन्थका रोंका निर्देश किया है। प्रथम हरिषेण तो समुद्रगुप्तके राजकवि हैं, जिन्होंने इलाहाबाद स्तम्भलेख ई० सन् ३४५ में लिखा है । द्वितीय हरिषेण अपभ्रंश भाषामें लिखित 'धर्मपरीक्षा' के रचयिता हैं । इन्होंने अपने सम्बन्धमें लिखा है कि मेवाड़की सोमामें स्थित श्रीजीरा ( श्री ओजपुर ) प्रदेशके धक्काडकुल नामक स्थानमें निवास करनेवाले विविध कलाओंके मर्मज्ञ हरिनामक पुरुष हुए। इनके पुत्रका नाम गोवर्धन था और उसकी पत्नी गुणवती जिन भगवानके चरणों में श्रद्धा रखनेवाली थी। उनका पुत्र हरिषेण आगे चलकर विद्वान् कविके रूपमें विख्यात हुआ। वह किसी कार्यवश चित्तौड़ छोड़कर अकालपुर गया । वहाँ उसने छन्दशास्त्र और अलंकारशास्त्रका अध्ययन किया और वि० सं० १०४४ के व्यतीत होनेपर धर्म-परीक्षा नामक ग्रंथ की रचना की। उसने लिखा १. बृहत् कथाकोश, भारतीय विद्या भवन, बम्बई, सन् १९४३ अंग्रेजी प्रस्तावन १० ११७-११९ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ६३
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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