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श्रीमद्भागवत और विष्णुपुराणसे तुलना
प्रद्युम्नका पावन-जीवन और साहिर के प्रति भी हागवत और विष्णुपुराण आदि ग्रन्थोंमें भी वर्णित है। श्रीमद्भागवतके दशम स्कन्धके ५२वें अध्यायसे ५५वें अध्याय तक यह चरित आया है। बताया गया है कि विदर्भदेशके अधिपति भीष्मकके पांच पुत्र और सुन्दरी कन्या थी। सबसे बड़े पुत्रका नरम रुक्म था। यह अपनी बहन रुक्मिणीका विवाह शिशुपालके साथ करना चाहता था । अतः उस कन्याने एक विश्वासपात्र ब्राह्मणको श्रीकृष्णके यहाँ अपना सन्देश देकर भेजा। ब्राह्मणने श्रीकृष्णसे रुक्मिणीके प्रेमकी बात कह सुनायी और शीघ्र ही विदर्भ चलनेके लिये उनसे अनुरोध किया । ब्राह्मणने वापस लौटकर रुक्मिणीको श्रीकृष्ण पधारनेकी सूचना दी | भीष्मकने श्रीकृष्ण और बलरामका स्वागत किया। रुक्मिणी अपनी सखियोंके माथ देवीके मन्दिरमें गयी और भगवतीसे श्रीकृष्णकी प्राप्ति के लिये प्रार्थना करने लगी | श्रीकृष्ण शत्रुओंकी सेनाको मोहित कर और रथमें रुक्मिणीको सवार कराकर चल दिये । रुक्मने श्रीकृष्णका पीछा किया | श्रीकृष्णने उसकी में छकी बाल उखाड़कर उसे विकृत कर दिया और रुक्मिणीकी प्रार्थना पर उसे प्राणदान दिया । द्वारिकामें आनेपर विधिपूर्वक रुक्मिणीके साथ कृष्णका विवाह सम्पन्न हो गया।
समय पाकर रुक्मिणीके गर्भसे प्रद्य म्नका जन्म हुआ। अभी प्रद्युम्न दश दिनका भी नहीं हो पाया था कि शम्बासुरने वेश बदलकर सूतिका-गृहसे बालकका अपहरण कर उसे समुद्र में फेंक दिया। समुद्र में बालक प्रद्युम्नको एक मच्छ निगल गया। मछुओं द्वारा वह मच्छ पकड़ा गया और उन्होंने उसे शम्बासुरको भेंट किया । मच्छसे निकले बालकको शम्बासूरने अपनी दासी मायावतीको समर्पित किया। यह मायावती कामदेवकी पत्नी रति हो थी। उसने कुमार प्रद्युम्नका लालन-पालन किया । जब प्रद्युम्न युवा हो गया, तब मायावती उसके समक्ष कामके भाव प्रकट करने लगी। प्रद्युम्नने उससे कहा-'पालन करनेवाली तुम मेरी माँ हो ! तुम इस प्रकारके विकृत विचार क्यों करती हो' ? मायावतीने कहा-'प्रभो ! आप स्वयं नारायणके पुत्र हैं, शम्बासुर आपको सूतिकागृहसे चुरा लाया था। आप मेरे पति कामदेव हैं और मैं सदाको आपकी पली रति हूँ। शम्बासुरले आफ्को समुद्रमें डाल दिया था, वहाँ एक मछली निगल गयी थी। मछलीके पेटसे मैंने आपको प्राप्त किया । गम्बासुर माया जानता है । अतः मायात्मक विद्याओं के अभावमें उसका जीतना सम्भव नहीं ।" उसने महामाया नामकी विद्या प्रद्युम्नको सिखलायी। प्रद्युम्नने युद्ध में शम्बा
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ६१