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स्वागत किया । वह हेमरथको सुन्दरी भार्याको देखकर मोहित हो गया मंत्रियों के परामर्शानुसार उसने प्रथम भीमका बध किया। अनन्तर हेमरथकी रानीको ले लिया। प्रियाके अभावमें हेमरथ उन्मत्त हो गया। एक दिन हमरथको रानी द्वारा सम्बोधन प्राप्त होनेपर वह अपने पुत्रको राज्य सौपकर मुनि हो गया। कैटभने भी श्रमण दीक्षा धारण की। समाधिमरण धारणकर वे दोनों स्वर्गमें देव हुए। वहाँसे च्युत हो मधुका जीव प्रद्युम्न, कंटभका जीव जाम्बवती पुत्र और हेमरथका जीव धूमकेतु हुआ है। इसी धूमकेतुने प्रद्युम्नका अपहरण किया है। -सप्तम सर्ग
कालसंवरके घर प्रद्युम्न वृद्धिंगत होने लगा। युवक होनेपर प्रद्युम्नने कालसंवरके शत्रुओंको परास्त किया, जिससे उसने प्रसन्न हो, अपनी पत्नीके समक्ष की गयी प्रतिज्ञाके अनुसार ५०० पुत्रोंके रहनेपर भी प्रद्य म्नको युवराज बना दिया। उसके युवराज होने पर कालसंवरके अन्य पुत्र उससे द्वेष करने लगे । वे उसे विचर्याको गुफालामें ल गये, नियामें नाग, राक्षस आदि निवास करते थे। प्रद्य म्नने सभीको अपने अधीन किया। कालसंबर प्रद्य म्नकी इस वोरतासे बहुत प्रसन्न हुआ और वह पिताको अनुमतिसे माता कञ्चनमालाके भवनम गया । रानी कञ्चनमाला उसके रूपसौन्दर्यको देखकर मुग्ध हो गयी। प्रद्युम्नने उसे समझाया, पर उसकी अनुरक्ति न घटी। प्रद्य म्नने कञ्चनमालासे दो विद्याएँ सीख ली | अन्ततोगत्वा जब उसने देखा कि प्रद्य म्न वासनाको पूरा नहीं करता है, तो उसने उसपर बलात्कारका दोषारोपण किया। राजाने मृत्युदण्ड देनेके लिये सेना मेजो। स्वयं भी उसने प्रद्युम्नको पकड़ना चाहा, पर विद्यावलसे वह प्रद्युम्नका कुछ भी नहीं कर सका । नारदने आकर प्रद्य म्नके सम्बन्धमें समस्त बातें बतला दी, जिससे कालसंवर बहुत प्रसन्न हुआ। --अष्टम मग |
प्रद्युम्न नारदमुनिक साथ द्वारावतीको चला। सत्यभाभाका पुत्र भानु दुर्वाचनकी पुत्री उदधिसे विवाह करना चाहता था। प्रद्युम्लने वनचरकारूप धारण कर उन मबको परास्त किया और उदधिको हर माया । उदधि नारदमनिके समक्ष रोने लगो। प्रद्युम्नने अपना वास्तविक रूप दिखलाया, जिससे वह अनुरक्त.हो गयो । प्रद्युम्नने सत्यभामा तनय भानुको परास्त किया और मर्कटरूप धारणकर पत्याभामाके उपवनको नष्ट कर दिया। उसने बाजार नष्ट किया । मेष द्वारा बलरामको मूच्छित किया । अनन्तर प्रद्युम्न अपनी माँ रुक्मिणीके भवन में अत्यन्त कुरूप और विकृत वेशमें आया । श्रीकृष्ण के निमित्त बने समस्त पक्वान्न उसे खिला दिये। प्रद्युम्नने अपना वास्तविक रूप प्रकट किया और माताके आदेशसे विद्याबल द्वारा बाल-क्रीड़ाएँ प्रस्तुत की। अनन्तर
प्रभुदानायं एवं परम्परागोषकाचार्य : ५..