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________________ तथा उससे वरदान मांगा कि मापद रुक्मिणोका त्यागकर मेरे दास बनें । इसी समय श्रीकृष्ण कुञ्जमे निकल आये और हँसने लगे। मुक्मिणी और सत्यभामामें मित्रता हो गयी। दूसरे दिन मैत्रीका संदेश लंकर दूत आया। श्रीकृष्णने वस्त्राभूषण देकर उसे वापस लौटा दिया । तृतीय सर्ग__क्मिणी और सत्यभामाने बलगमके समक्ष प्रतिज्ञा की कि जिसके पहले पुत्र होगा, वह पीछ होनेवाले पुत्रको भाताके वालोंका अपने पुत्रके विवाहके समय मण्डन करा देगी। मुक्मिणीका पुत्र उत्पन्न हुआ। जन्मके पांचवें दिन धूमकेतू नामक दैत्यने उस शिशका अपहरण क्रिया! उगने उस शिशको वातरक्षकगिरिकी कन्दरामें रख दिया और एक शिलासे उस कन्दराके द्वारको भी आवृत कर दिया । दत्यक चले जानेके उपरान्त वहाँ कालसंबर गजा अपनी प्रेयसी कंचनमालाके माथ विहार करता हुआ आया । कालसंवरने कन्दरास पुत्रको निकालकर कचनमालाको मौंप दिया और नगर में आकर यह घोषित किया कि कञ्चनमालाने पुत्रका जन्म दिया है। जन्मोत्सव सम्पन्न किया और बालकका नाम प्रद्य म्न रक्खा गया ! --चतुर्थ सर्ग पत्रके अपहरणसे द्वारावतोम तहलका मच गया। रुक्मिणी विलखवलख कर रोने लगी। कृष्णने पुत्रकी तलाश करनेका बहुत प्रयास किया, पर पता न चला । नारदने विदेहमें जाकर सीमन्धर स्वामीके समवशरणमें श्रीकृष्णके नवजात शिशुके अपहरणके सम्बन्धी प्रश्न किया । उत्तर प्राप्त हुआ कि पूर्वजन्मकी गश्रुताके कारण धूमकेतु दत्यने पुत्रको चराया है। अब उसे कालसर प्राप्त कर चुका है। वह पुत्रवत् पालन करेगा और सोलह बर्षको अवस्था होनेपर वापस आयेगा । केवलीने प्रद्य म्नके पूर्वजन्मका आख्यान भी कहा |--पञ्चमसर्ग अयोध्या नगरी में अरिजय राजा रहता था। इसकी रानी प्रीतिकराके गर्भसे पूर्णभद्र और मणिभद्र नामक दो पत्र हुए। राजा मुनिका उपदेश सुनकर विरक्त हो गया और पुत्रको राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर ली। इसो समय दो वणिक पुत्रोंने श्रावकधर्म ग्रहण किया। एक मुनि द्वारा कूतिया और मातंगको पूर्वभवावलि सुन वे दोनों दीक्षित हो गये और तपश्चरण द्वारा स्वर्ग प्राप्त किया। -षष्ठ सर्ग कौशल नगरीमें हेमनाग राजा रहता था। इसके मध और कैटभ पुत्र थे। मधुको राज्य और कैटभका युवराज पद देकर वह भार्या सहित संन्यासी हो गया । मधु और कैटभ बड़े प्रतापी थे। समस्त राजा इनके चरणोंमें नतमस्तक होते थे। एक दिन भीमने उनके राज्यमें प्रवेश कर नगरको जलाया और जनताको कष्ट दिया । मधुने उसके राज्यपर आक्रमण किया । मार्गमें हेमरथने उसका ५८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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