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________________ यिता होनेके साथ शब्दाम्भोजभास्कर नामक जेनेन्द्रन्यासके कर्त्ता भी थे। इसी अभिलेखमें पद्मनन्दि सैद्धान्तिकको अविद्धकरण और कौमारदेवव्रती लिखा है। इन दोनों विशेषणोंसे अवगत होता है कि पद्मनन्दि सैद्धान्तिकने कर्णवेध होनेके पहले ही दीक्षा धारण की होगी और इसी कारण वे कौमारदेवव्रती कहे जाते थे । ये मूलसंधान्तर्गत नन्दिगणके प्रभेदरूप देशीय गणके गोल्लाचार्य के शिष्य थे । प्रभाचन्द्र के सवर्मा कुलभूषणमुनि थे। कुलभूषणमुनि भी सिद्धान्तशास्त्रोंके पारगामी और चारित्रसागर थे । इस अभिलेखमें कुलभूषणमुनिकी शिष्यपरम्पराका उल्लेख हैं, जो दक्षिण भारत में हुई थी । प्रभाचन्द्र पद्ननन्दि से शिक्षा-दीक्षा लेकर उत्तर भारतमें धारा नगरीमें चले आये और यहाँ आचार्य माणिक्यनन्दिके सम्पर्क में आये। प्रभाचन्द्रने अपनेको माणिक्यनन्दिके पदमें रत कहा है । इससे उनका साक्षात् शिष्यत्व प्रकट होता है । अतः यह सम्भव है कि प्रभाचन्द्र जैन न्यायका अभ्यास माणिक्यनन्दिसे किया हो और उन्हींके जीवनकालमें प्रमेयकमलमार्त्तण्डको रचना की हो । बताया है--- शास्त्रं करोमि वरमल्पत रावबोधो माणिक्यनन्दिपदपङ्कजसत्प्रसादात् । अर्थं न कि स्फुटयति प्रकृतं लचीयाँल्लोकस्य भानुकरविस्फुरिताद्गवाक्षः ' ॥ X X X गुरुः श्रीनन्दिमाणिक्यो नन्दिताशेषसज्जनः | नन्दतादुरितैकान्तरजाजनमतार्णवः ॥ I श्रीपद्मनन्दि सैद्धान्तशिष्योऽनेक गुणालयः प्रभाचन्द्रश्चिरं जीयाद्वननन्दिपदे रतः ॥ श्रवणबेलगोलके अभिलेख संख्या ५५ में मूल संघके देशोयगणके देवेन्द्र सिद्धान्तदेवका उल्लेख है। इनके शिष्य चतुर्मुखदेव और चतुमुखदेवके शिष्य गोपनन्दि थे । इन गोपनन्दिके सर्मा एक प्रभाचन्द्रका उल्लेख आता है । पद्य निम्न प्रकार है श्री धाराधिपभोजराज - मुकुट प्रोताश्म - रश्मि च्छटा-कुङ्कुम - लिप्त चरणाम्भोजात - लक्ष्मीधवः । च्छाया १. प्रमेयकमलमार्त्तण्ड, मंगलाचरणपद्य २ | २. बही, प्रशस्तिपद्य संख्या ३-४ 1 ४६ : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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