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न्यायजाकरमण्डने दिनमणिश्शब्दान्ज-रोदोमणिस्थेयात्पण्डित-पुण्डरीक-तरणिश्रीमत्प्रभाचन्द्रमाः ॥ श्रीचतुर्मुख-देवानां शिष्योऽधृष्यःप्रवादिभिः ।
पण्डितश्रीप्रभाचन्द्रो रुद्रवादि-गजाङ्कशः ।। इन पद्मों में वर्णित प्रभाचन्द्र धाराधीश भोजके द्वारा पूज्य थे। न्यायरूप कमल समूह--प्रमेयकमलके दिनर्माण-मार्तण्ड थे। 'शब्दरूप अज'-दशब्दाम्भोजके विकास करनेको 'रोदोमणि'–भास्करके समान थे। पण्डितरूपी कमलोंको प्रफुल्लित करनेवाले सूर्य थे। रुद्रवादि-गजोंको वश करनेके लिये अंकुशके समान ये तथा चतुर्मुखदेवके शिष्य थे । __उपर्युक्त अभिलेखमें वर्णित प्रभाचन्द्र निश्चय ही प्रमेयकमलमार्तण्डके रचयिता प्रभाचन्द्रसे अभिन्न हैं । एक ही बात यहाँ विचारणीय है कि गुरुरूपसे चतुर्मुखदेवका उल्लेख किस प्रकार घटित होता है। इनके आद्य गुरु पद्मनन्दि सैद्धान्तिकदेव है। बदल सम्भव है कि द्वितीय गरु या ग़ासम चतुर्मख देव रहे हों। धारानगरीमें आनेके पश्चात् देशीयगणके आचार्य चतुर्मुखदेवको गुरुके रूपमं स्मरण किया गया हो। प्रभाचन्द्रने अपना 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' धारानगरीमें लिखा है, यह इस ग्रन्थकी प्रशस्तिसे भी प्रकट है
"श्रीभोजदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठिपदप्रणामाजितामलपुर्ध्यान राकृतनिखिलमलकलझेन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन निखिलप्रमाणप्रमेयस्वरूपोद्द्योतपरीक्षामुखपदमिदं विवृतमित्ति" ।
श्रवणवेलगोलके उक्त अभिलेखमें प्रभाचण्द्रको गोपनन्दिका सधर्मा कहा गया है। 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' और 'न्यायकुमुदचन्द्र' को प्रशस्तियोंमें 'पण्डित' शब्दका उल्लेख प्राप्त होता है, जिससे इनका गृहस्थ होना ज्ञात होता है; पर आराधनागद्यकोषकी ८९ कथामें ग्रन्थान्तमें तथा प्रशास्तियोंमें 'भट्टारक' लिखा है । अतः जान पड़ता है कि ये जीवनके उत्तरकालमें मुनि हुए होंगे। समय-निर्णय __ आचार्य प्रभाचन्द्रके समयके सम्बन्धमें कई मान्यताएँ प्रचलित हैं। इन समस्त मान्यताओंके अध्येताओंने पर्याप्त छानबीन की है। हम यहाँ उन सभी मतोंका संक्षेपमें उल्लेख कर प्रभाचन्द्र के समयके सम्बन्धमें निष्कर्ष उपस्थित करेंगे।
१. आदिपुराण, भारतीन ज्ञानपीठ, १४७ । २. प्रभेयकमलमासण्ड, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई १९४१, अन्तिम प्रशस्ति ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोपकाचार्य : ४७