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________________ और भास्करके समय के बीच श्रीधराचार्यको छोड़कर कोई अन्य प्रकाण्ड गणितज्ञ न हुआ । महावीराचार्यने पूर्ववर्ती गणितज्ञोंके कार्य में पर्याप्त संशोधन और परिवर्द्धन किये | नवीन प्रश्न दिये, दीर्घवृत्तका क्षेत्रफल निकाला तथा मूलबद्ध तथा द्विघातीय समीकरण आदिके गणितका प्रणयन किया । इन्होंने शून्यके विषयमें भागक्रिया करनेकी प्रणालीका आविष्कार किया । किसी संख्या में शून्य द्वारा विभाजनके लिये फ्लोंका निरूपण करते हुए बताया कि संख्या शून्य द्वारा विभाजित होनेपर परिवर्तित नहीं होती है। जिस दृष्टिकोणको लेकर यह सिद्धान्त निबद्ध किया है, वह सिद्धान्त स्थूल विभाजन पर आवृत है । यों तो शून्य द्वारा किसी संख्याको विभाजित करनेपर फल परिमित ( Finite } आता है । महावीराचार्य और ब्रह्मगुप्त आदिके प्रश्नों तथा अन्य प्रकरणोंकी भिन्नताके सम्बन्धमें डेविड यू जेन स्मियका वक्तव्य द्रष्टव्य है ।" समय - निर्णय महावीराचार्यने अमोघवर्षके सम्बन्धमें छह श्लोक निबद्ध किये हैं । इन पद्योंसे अवगत होता है कि आचार्य अमोघवर्षके आश्रय में अवश्य रहे हैं। उन्होंने लिखा है - "धन्य हैं वे अमोघवर्ष, जो हमेशा अपने प्रिय पात्रोंके हित चिन्तन में संलग्न रहते हैं और जिनके द्वारा प्राणी तथा वनस्पति महाभारी और दुर्भिक्ष आदिसे मुक्त होकर सुखी हुए हैं। जिन अमोघवर्षके चित्तकी क्रियाएँ अग्निपुञ्ज सदृश होकर समस्त पाप-रूपी वैरियोंको भस्ममें परिणत करने में सफल हैं और जिनका क्रोध व्यर्थ नहीं जाता, जिन्होंने समस्त संसारको अपने वशमें कर लिया है और जो किसीके वशमें न रहकर शत्रुओं द्वारा पराजित नहीं हो सके, अपूर्व मकरध्वजकी तरह शोभायमान है। जिनका कार्य अपने पराक्रम द्वारा पराभूत राजाओंके चक्रसे होता है और जो न केवल नामसे चक्रिकाभंजन हैं, अपितु वास्तव में भी चक्रिकाभंजन – जन्म-मरणके नाशक हैं। जो अनेक ज्ञानसरिताओं के अधिष्ठाता होकर सच्चरित्रताको वज्रमयी मर्यादा वाले हैं और जो जैनधर्मरूप रत्नको हृदयमें रखते हैं, इसलिये वे यथाख्यात्तचारित्रके महात् सागरके समान सुप्रसिद्ध हुए हैं। एकान्त पक्षको नष्ट कर जो स्याद्वादरूपी न्यायशास्त्र के वादी हुए हैं, ऐसे महाराज नृपतुंगका शासन वृद्धिंगत हो ।" उक्त उद्धरणसे ज्ञात है कि यह अमोघवर्षं प्रथम जगत्तुंगदेव गोविन्दतृतीय 1. Introduction to English translation and notes of गणितसारसंग्रह by M. Rangacharya ( 1912 ) २. गणितसारसंग्रह, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, संज्ञाधिकार, पद्य २, ८ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य: ३५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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