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३. पावतीकथा ! साक सं० १६५२ आश्विन शुक्ला द्वादशी ), ४. पुष्पाञ्जलिकथा ( शक सं० १६६० ), ५. लवणांकुशकथा, ६. अनन्तकथा, ७. सुगन्धदशमीकथा, ८. जीवन्धरपुराण (शक सं० १६६६ वैशाख शुक्ला द्वादशी), ९. नन्दीश्वरउद्यापन, १०, आदिनाथस्तोत्र, ११, शान्तिनाथस्तोत्र, १२. पाश्वनाथस्तोत्र, १३. पद्मावतीस्तोत्र, १४. क्षेत्रपालस्तोत्र, १५. ज्येष्ठजनवरपूजा, १६. शान्तिनाथआरती।
सुरेन्द्रभूषण साहित्य और संस्कृतिक परिपोषकोंमें बलात्कारगण और अटेर शाखाका भी महत्वपूर्ण स्थान है। इस शाखामें सिंहकीर्ति, धर्मकीर्ति, शीलभूषण, ज्ञानभूषण, जगतभूषण, विश्वभूषण, देवेन्द्रभूषण और सुरेन्द्रभूषण का नामोल्लेख मिलता है । सुरेन्द्रभूषण देवेन्द्रभूषणके शिष्य थे। इन्होंने संवत् १७६० फाल्गुन शुक्ला प्रतिपदाको सम्यग्ज्ञानयन्त्र, सं० १७६६ माघ शुक्ला पंचमीको षोडशकारण यन्त्र; सं० १७७२ फाल्गुन कृष्णा नवमीको सम्यग्दर्शनयन्त्र और सं० १७९१ को फाल्गुन कृष्णा नवमीको अटेरमें दशलक्षणयन्त्रकी स्थापना की। अतएव सुरेन्द्रभूषण भट्टारकका समय वि० सं० को १८वीं शतोका उत्तरार्द्ध है। सम्यग्दर्शनयन्त्रपर निम्नलिखित अभिलेख अंकित है
"सं० १७७२ वर्षे फाल्गुन बदि ९ चंद्रे श्रीमूलसंघे भ० श्रीदेवेन्द्रभूषणदेवाः तत्पटें भ० श्रीसुरेन्द्रभूषणदेवाः तस्मात् ब्रह्म जगतसिंह गुरूपदेशात् तदा म्नाये लंबकंचुकान्वये बुढेले ज्ञातीये ककौआ गोत्रे श्री सा सिवरामदास भार्या देवजावी..."।
सुरेन्द्रभूषणकी एक ही रचना 'ऋषिपंचमी कया उपलब्ध है। इस ग्रन्थकी प्रशस्तिमें रचनाकाल वि० सं० १७५७ अंकित है। कविने इसे श्रावकोंके पढ़नेपढ़ानेके लिये लिखा है। १. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ३२१ ४५० : तीर्थकर महावीर और उनकी मात्रार्यपरम्परा