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________________ धर्मचन्द्र नामके चार विद्वान् हुए हैं। एक देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य धर्मचन्द्र हैं । द्वितीय कुमुदचन्द्रके शिष्य धर्मचन्द्र हैं, तृतीय विशालकीर्तिके शिष्य धर्मचन्द्र है और चतुर्थ देवेन्द्रकीर्तिके शिष्य धर्मचन्द्र हैं । विशालकीर्ति के पट्टशिष्य धर्मचन्द्रशक संवत् १६०७ फाल्गुन कृष्णा दशमीको चौबीसी मूर्तिको स्थापना की । इन्होंने शक संवत् १६१२ ज्येष्ठ कृष्णा सप्तमीको पद्मावती की मूर्ति स्थापित की है । धर्मचन्द्र शिष्य गंगादासने वि० सं० १७४३ श्रावण शुक्ला सप्तमीको श्रुतस्कन्ध कथाकी एक प्रति लिखी है। सारे द्वारा विवे गंगादार विशालकीर्तिके शिष्य धर्मचन्द्र के शिष्य हैं। इनकी पण्डित उपाधि थी। इससे यह ज्ञात होता है कि इन्हें भट्टारकका पट्ट प्राप्त नहीं हुआ था । श्रुतस्कन्धकथाकी प्रशस्ति में लिखा है " सं० १७४३ वर्षे श्रावण सुदि ७ शुक्रं भ० श्री धर्मचन्द्रः तस्य पंडित गंगादास लिखितं । श्रीकार्य रंजकनगरे श्रीचंद्रप्रभ चैत्यालये ।" गंगादासने श्रुतस्कन्घकथाके अतिरिक्त शक संवत् १६१२ पौष शुक्ला त्रयोदशीको पार्श्वनाथभवान्तरकी रचना तथा शक संवत् १६१५ की अषाढ़ शुक्ला द्वितीयाको आदित्यवारकथाकी रचना की है । इनके अतिरिक्त सम्मेदाचलपूजा, त्रेपनक्रियाविनती, जटामुकुट और क्षेत्रपालपूजा भी इन्होंने लिखी हैं। क्षेत्रपालपूजा और सम्मेदाचलपूजा संस्कृतभाषा में लिखी गयी है और इनकी रचनाकी प्रेरणा संघपति मेधा और शोभाके द्वारा प्राप्त हुई है । देवेन्द्रकीर्ति धर्मचन्द्र के पश्चात् बलात्कार गणकी कारञ्जा शाखा में देवेन्द्रकीति पट्टाघीश हुए । इन्होंने कारजा निवासी बघेरवाल शिष्योंके साथ शक संवत् १६४३ की पौष कृष्णा द्वादशीको श्रवणबेलगोलकी यात्रा की। इस यात्राका उल्लेख श्रवणबेलगोलके अभिलेखों में निम्न प्रकार हुआ है- "सके १६४३ पीस वदि १२ शुक्रवारे भण्डेबेडकीति ( देवेन्द्रकीति ) सहित उघरवल जाति होरासाह सुत हाससा सुत चागेवा सोनाबाई राजाई गोमाई राधाई, मन्नाई सहित जात्रा सफल करी कारज कर ।" शक संवत् १६५० की पौष शुक्ला द्वित्तीयाको आपने नासिक के पास त्र्यम्बक ग्रामके पाश्र्ववर्ती गजपंथ पर्वतकी वन्दना की थी । तदनन्तर ११ दिनके पश्चात् १. भट्टारकसम्प्रदाय, लेखांक १३७ । २. जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, अभि० सं० ३६६, पृ० ३४५ । ४४८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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