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'इति धर्मोपदेशपीयूपवर्पनामथावकाचार भट टारकश्रीमलिनभूषणशिष्यब्रह्मनेमिदत्तविरचिते सल्लेखनाक्रमव्यावर्णनो नाम पंचमोऽधिकारः' ।
रात्रिभोजनत्यागकथा--रात्रिभोजनत्याग व्रतका महत्त्व बतलानेके लिए नागथीको कथा लिखी गयी है । आचार्यने कथाके मध्यमें रात्रिभोजनके दोषों का भी निरूपण किया है ! अनिमें पुष्पिकावाक्य निम्नप्रकार आया है
"इति भट्टारकथीमल्लिभूगणशिष्याचार्यश्रीसिंहनन्दिगुरूपदेशेन ब्रह्मनेमिदत्तविरचिता रात्रिभोजन-गरित्यागफलदृष्टान्त-श्रीनागश्रीकथा समाप्ता।"
मालारोहिणी—इस फूलमालामें आरम्भमें २४ तीर्थंकरोंका स्तवन किया गया है। मध्यमें धन, सम्पत्ति, यौवन, पुत्र, कलत्र आदिको क्षणविध्वंशी कहकर दान देनेकी प्रवृत्तिको प्रोत्साहित किया गया है। संसारके समस्त ऐश्वर्योको प्राप्तकर जो व्यनित्त प्रभावित नहीं करता, तीर्थंकरोंके चरणोंकी आराधना नहीं करता, वह अपने जन्मको निरर्थक व्यतीत करता है। इस पंचम कालमें तीर्थंकरभक्ति ही आत्मोत्थानका साधक है। भक्त सरलतापूर्वक अपने राग, द्वेष, रोग, शोक, दारिद्रय आदिको दूर कर देता है। रचना निम्नप्रकार है
वृषभ अजित संभव अभिनन्दन,
सुमति जिणेसर पाप निकंदन ! पम प्रभु जिन नामें गज्जउँ श्रीसुपास चंदप्पह पुज्जउँ। पुष्फयंतु सीयल पुज्जिज्जइ,
जिणु सेयंसु महिं भाविज्जइ । वासुपुज्ज जिण पुज्ज करेप्पिणु,
विमल अणंत धम्मुझाएप्पिणु ।। xx सुरासुर किनर खेयर भूरि, जिपिाद पयचहिं णचहि णारि । सुरअप्छर गावहि सोक्खह धाम, जिणिदह सोहइ मोत्तिय दाम ॥
गलति झत्ति जाइ कालु मोह जालु वट टए । सु होहि जाणु भव्य भाणु अग्गि जेम कड़ढए । जिणिद चंद पाय पूज्ज धम्मकज्जकिज्जए,
सुपत्तदाणु पुण्णठाणु वयणिहाणु लिज्जए॥ ४०६ : तीर्थकर महावीर और उनकी वाचायपरम्परा