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________________ ७. सतीगीत - इसमें २७ पद्य है । शीलकी महत्ता अंकित की गयी है । प्रत्येक गीत में सतोमाहात्म्य वर्णित है । ८. बोसतीर्थंकरजयमाला - बीस तीर्थंकरोंकी महत्त्वसूचक स्तुतियाँ अंकित और त्रिकालवर्ती ९. सोमोसीस्तुति इस रचना चौबीस तीर्थंकरों की स्तुतियाँ गुम्फित हैं । १९ श्रुतसागरसूरि श्रुतसागरसूरि केवल परम्परा परिपोषक ही नहीं हैं, अपितु मोलिक संस्थापक भी हैं । इनकी तत्त्वार्थसूत्र पर एक श्रुतसागरी नामकी वृत्ति उपलब्ध है, जिससे इनका मौलिकताच परिचय प्राप्त होता है। श्रुतसागरने अपनी रचनाओं के अन्त में अपने गुरु आदिका नाम अंकित किया है। ये मूलसंघ सरस्वतीगच्छ और बलात्कारगणके आनायं हैं । इनके गुरुका नाम विद्यानन्द था । विद्यानन्दिके गुरुका नाम देवेन्द्रकीति और देवेन्द्रको तिक गुरुका नाम पद्मनन्दि था | ये पद्मनन्द सम्भवतः वहा हैं, जिनकी गिरनार पर्वतपर सर स्वतोदेवीने दिगम्बर पंथ के सच्चे होनेकी सूचना दी थी। इन्हींकी एक शिष्यशाखा में सकलकोति, विजयकीति और शुभचन्द्र भट्टारक हुए हैं। ये बलात्कारगणको सूरत- शाखा के भट्टारक हैं। विद्यानन्दिके पश्चात् मल्लिभूषणभट्टारक हुए, जो श्रुतसागर के गुरुभाई थे । मल्लिषेणके अनुरोध से श्रुतसागरने यशोधरचरित, मुकुटसप्तमीकथा और पल्लविधानकथा आदिको रचना की है । I श्रुतसागरके अनेक शिष्य हुए हैं, जिनमें एक शिष्य श्रीचन्द्र थे, जिनके द्वारा रचित वैराग्यमणिमाला उपलब्ध है । आराधना कथाकोश, नेमिपुराण आदिग्रन्थोंक रचयिता ब्रह्मनेमिदत्तने भी श्रुतसारको गुरुभावसे स्मरण किया है । ये ब्रह्मनेमिदत्त मल्लिभूषण के शिष्य थे । १ श्रुतसागरने अपनेको देशव्रती, ब्रह्मचारी या वर्णों लिखा है तथा 'नक्मवतिमहावादिविजेता, तर्क-व्याकरण- छंद - अलंकार - सिद्धान्त-साहित्यादि-शास्त्रनिपुण, प्राकृतव्याकरणादि अनेकशास्त्रचञ्चु उभयभाषा कविचक्रवर्ती, तार्किक शिरोमणि, परमागमप्रवीण आदि विशेषणोंसे अलंकृत किया है । तत्त्वार्थवृत्तिके १. " इत्यनवद्यगद्यपद्यविद्या विनोदितप्रमोदपीयूष रसपानप विनमतिस भाज रत्नराजमतिमा - गरयति राजराजितार्थं न समर्थेन तर्कव्याकरण छन्दोऽलङ्कार साहित्या दिशास्त्र निशितमविना श्रीमद्देवेन्द्र कांतिभट्ट । रकप्रशिष्येण शिष्येण सकलविद्वज्जनविहित चरणसेवस्य श्री प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३९१
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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