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अन्तिम सन्धिवाक्यसे ज्ञात होता है कि इन्होंने तत्त्वार्थं श्लोकवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि, न्यायकुमुदचन्द्र, प्रमेयकमलमार्तण्ड, तत्त्वार्थं वार्तिक और अष्टसहस्त्री आदि ग्रंथोंका गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया है। इससे स्पष्ट है कि श्रुतसागर अपने समयके अच्छे विद्वान् और ग्रन्थकार थे ।
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श्रुतसागरसूरि द्वारा रचित पल्लिविमानकथामें ईडरके राजा भानु अथवा रावभाणजीके राज्यकालका निर्देश है। इस ग्रन्थको प्रशस्ति में बताया है कि भानुभूपतिकी भुजारूपो तलदारके जलप्रवाह में शत्रु कुलका विस्तृत प्रभाव निमग्न हो गया था और उनका मंत्री हुम्मड कुलभूषण भोजराज था । उसकी परमीका नाम दिनदेवी था जी की परिद्रता साध्वी और जिनचरणकमलोंकी उपासिका थो । उसके चार पुत्र उत्पन्न हुए थे, जिनमें प्रथम पुत्र कर्मसिंह, जिसका शरीर भरि रहनगुणोंसे विभूषित था और दूसरा पुत्र कुलभूषण था, जो शत्रुकुलके लिये कालस्वरूप था। तीसरा पुत्र पुण्यशाली श्री घोष था, जो सघनपापा गरीन्द्रके लिये वञ्चके समान था और चौथा गंगाजलके समान निर्मल मन वाला गंगा था। इन चार पुत्रोंके पश्चात् इनकी एक बहन भी थीं, जो जिनवर के मुख़से निकली हुई सरस्वती के समान थी । श्रुतसागरने स्वयं उसके साथ संघ सहित गजपन्थ और तुंगोगिरि आदिको यात्रा' की थी ।
श्रुतसागरका व्यक्तित्व एक ज्ञानाराधक तपस्वीका व्यक्तित्व है, जिनका एक-एक क्षण श्रुतदेवताको उपासना में व्यतीत हुआ है | श्रुतसागर निस्सन्देह अत्यन्त प्रतिभाशाली विद्वान है । ये कलिकालसर्वज्ञ कहे जाते थे । तार्किक होनेके कारण असहिष्णु भी प्रतीत होते हैं । अन्य मतका खण्डन और विरोध करनेमें अत्यन्त सतर्क रहे हैं ।
विद्यानन्ददेवस्य संदितमिथ्यामतदुर्गारेण श्रुतसागरंग सूरिया विरंचितायां श्लोकवातिक-राजवार्तिक-सर्वार्थसिद्धि-न्यायकुमुदचन्दोदय- प्रमेय कमल मार्तण्ड-प्रचण्डाष्ट सहश्रीप्रमुख ग्रन्थ सन्दर्भावलोकनबुद्धि विराजिताया" - श्रुतसागरीतस्वार्थवृत्ति भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण, पृ० ३२६ पर उद्धृत । तथा---' -" तर्क- व्याकरणात प्रविल सत्सिद्धांतसारामलदो तिपूर्व नव्यकृ तषीसं श्रव्यकाव्योच्च ये ” – जैनग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह, प्रथम भाग, यशोधर चरितप्रशस्ति पृ० ३१ ।
१. जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह, प्रथम भाग, बोरसेवामन्दिर, दिल्ली, सन् १९५४, प्रस्तावना, पृ० १६ ।
३९२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा