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होकर गिर पड़ी। वह सखियों के साथ गिरनारपर जाने के लिये तैयार हो गयी । माता-पिता और परिजनोंने बहुत समझाया, पर वह न मानी और दीक्षा लेकर तपश्चरण करनेमें संलग्न हो गयो । कविने लिखा है
परम महोच्छकि आइए, नेमिजिन तोरण द्वार | शिव संबुदेहि दयाज, पशुवह किउ पुकार ||१०|| दोन वयणु सुर्णेवि करि, सारथि पुंछित ताम | तिसु कहणी मेठ जाणियों, अवधि नेमि जिनु ताम ॥ १०५ ॥ नेमीसम इम बोलए विंग् धिग् यह संसार । राज्य विवाहे कारणको करइ जीउ संसार ॥ १०६ ॥ घरि विरागु र फेरियउ, तिहा तैं करुणाधार |
पश बंधन छोड़ाविकरि नेमि चढ़े गिरनार ॥ १०७ ॥
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राजमती संयमधरी समकित रयण अच्युत स्वर्ग सुर भयो नारी लिंगु
सहाय । विहाय ॥
इसप्रकार नेमिचरित उच्चकोटिका काव्य है । इसमें खण्डकाव्यके सभी गुण पाये जाते हैं ।
४. झुंबिकगीत---इस कृति में नवदेवोंका कथन किया है । बताया है कि जो व्यक्ति भक्ति भाव से नवदेवोंकी आराधना करता है, वह इस कलिकालमें सभी प्रकार की सुख-समृद्धियोंको प्राप्त करता है। इस रचनाके उदाहरणरूप दो पद्य प्रस्तुत हैं
नवमउ झुंबुक शासनहि, पूजह सुरनर भव्य । अक्किट्टिम कट्टिम पडिमा तेहंड बंदउ सब्ब 11 जिन मारम नवदेवता माने नहि जो लोइ । काल अनंत परिभमइ, सुक्खु न पावइ सोइ ।।
५. श्रुतजयमाला - यह रचना संस्कृत-पद्यबद्ध है। इसमें आचारांगादि द्वादश अगोंका परिचय दिया गया है। आगमके विषय परिचयके साथ कवितामें अलंकारिकता भी पायी जाती है ।
६. चतुविशतिजिनस्तवन - यह संस्कृत में रचित स्तुतिकाव्य है । २४ तीर्थंकरोंकी संस्कृत भाषा में स्तुति लिखी गयी है । कविता रसात्मक और सरल है । कविने उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक जैसे अलंकारोंका भी प्रयोग किया है।
३९० : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा