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व्याजसे कविने २२ वें तीर्थंकर नेमिजिनका चरित अंकित किया है । वसन्तaj में कविने पुरानी रूढ़िके अनुसार अनेक वृक्षों, फलों, पुष्पोंके नामोंकी गणना की है। लिखा है
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वसंत ऋतु प्रभु आइयउ फूली फलो बनराइ । फुली करणी केतकी फूली, मउल सिरि जाइ ॥ १६॥ फूली पाडलिने वाली फूली लाल राय वेलि फूली भली, जाकी वासु फूलिउ मरुत्रो मोगरो, अरु फूले फूली कणियर सेवती, फूले सरि फुले कदंबक चंपकी अरु फूली जुही चमेली फूलसी, फूली वन वसन्तोत्सव मनानेके लिये द्वारावती के सभी नर-नारी जन उल्लाससे भर रहे हैं और वे टोलियोंके रूपमें बनकी ओर जा रहे हैं। सुन्दर गीतों की ध्वनिसे मार्ग वाचाल बना हुआ है। उनके पशु-पक्षी भी कलरव कर रहे हैं । राजकुलमें बड़ी चहल-पहल है। श्रीकृष्ण की रुक्मिणी, सत्यभामा आदि पट्टमहिषियाँ सज-धजकर केशर, कर्पूर, मिश्रित बावनचन्दनके घोलको तैयारकर साथमें ले जा रही है। जिन की भाभियोंकोरणा वसन्तो लिये तैयार हो रहे हैं । वनमें पहुँचकर सभीने वसन्तोत्सव सम्पन्न किया । वसन्तोत्सवसे वापस लोटनेपर कविने प्रसिद्ध घटनाकी ओर ध्यान आकृष्ट किया है। एक दिन राजसभामें नेमिजिनके बलका कथन हो रहा था । बलदेवने कहा कि नेमिजिनसे बढ़कर कोई शक्तिशाली नहीं है। इस कथनको सुनकर श्रीकृष्णको अभिमान उत्पन्न हो गया और उन्होंने नेमिजिनसे कहा कि यदि आप अधिक बलशाली हैं, तो मल्लयुद्ध कर देख लिजिये। तब नेमिजिनने उत्तर दिया- " योद्धा मल्लयुद्ध करते हैं, सत्य है, पर राजकुमारोंके बीच शक्तिपरीक्षा के लिये मल्लयुद्धका होना उचित नहीं है। यदि तुम्हें मेरे बलकी परीक्षा करनी है, तो मेरे हाथ या पैरकी उंगलीको झुकाओ । किन्तु श्रीकृष्ण हाथ या पैरको जंगलीको झुका नहीं सके । मिजिनने अपनी उंगलीसे ही श्रीकृष्णको झुला दिया, जिससे उन्हें उनकी शक्तिका परिज्ञान हुआ । जब नेमिजिनके विवाहका उपक्रम किया गया, तो श्रीकृष्णने षड्यन्त्रकर पशुओंको एक बाड़ेमें एकत्र कर दिया। जब बारात जूनागढ़ पहुँची, तो नेमिजिन पशुओं का करुण क्रन्दन सुन विरक्त हो गये । उन्होंने दिगम्बरी दीक्षा धारण की और उज्जयन्तगिरिपर तपस्या करने चले गये ।
जब राजुलको नेमिजिनको विरक्तका समाचार मिला, तो वह मूच्छित प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य: ३८९
गुलाल | रसाल ॥ २७॥ मचकुंद
अरविंद ||२८||
कचनार । कल्हार ||२९||