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स्पष्ट है कि इन जिनसेनका समय वि० स० की १६वीं शताब्दी है 1 इनका एक मात्र कृति नमिनाथरास उपलब्ध है। इसमें तीर्थकरनेमिनाथके जीवनका चित्रण किया गया है। जन्म, वरात, विवाहकंकणको तोड़कर वैराग्य ग्रहण करना, तपश्चरण, कैवल्यप्राप्ति एवं गिर्वाणलाभ इन सभी घटनाओंका संक्षेपमें वर्णन है। यह रास प्रबन्धकाव्य है और जीवनको समस्त प्रमुख घटनाएं इसमें चित्रित हैं। समस्त रचनामे ९३ पद्य हैं। इसकी प्रति जयपुरके दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर तेरह पंथी शास्त्रमण्डार में संग्रहीत है। प्रतिका लेखनकाल वि० सं० १५१६ पौवा क्ला पूर्णिमा है। रामको भाषा दरजस्थानी है जिसपर गुजरातीका प्रभाव है।
ब्रह्म जीवन्धर भट्टारक ब्रह्म जीवन्धर भट्टारक सोमकोसिके प्रशिष्य एवं यशःकोतिके शिष्य थे। भट्टारक सोमकीति काष्ठासंघको नन्दितट-शाखाके गुरु थे तथा ये १०वीं शताब्दीके भट्टारक रामसेनकी परम्परामें हुए हैं। सोमकीत्तिके अनेक शिष्योंमें यशःकीति, वीरसेन और यशोधर प्रसिद्ध हए हैं। इन्हीं यशःकोतिके शिष्य ब्रह्म जीवन्धर हैं। इन्होंने वि० सं० १५९० वैशाख शक्ला त्रयोदशी सोमवारके दिन भट्रारक विनयचन्द्र 'स्वोपज्ञचनडीटीका' की प्रतिलिपि अपने ज्ञानावरणीयकर्मके क्षयार्थ की थी। अत: इनका समय वि० सं० की : ६वीं शताब्दी है। इनकी निम्नलिखित रचनाएँ प्राप्त हैंरचनाएँ
१. गुणस्थानवेलि २. खटोलारास ३. झुबुकगीत ४. श्रुतजयमाला ५. नेमिरित ६. सतीगीत ७. तीनचौबीसोस्तुति ८. दर्शनस्तोत्र ९. ज्ञानविरागविनती १०. आलोचना ११. बीससीर्थंकरजयमाला १२. चौबीसतीर्थकरजयमाला
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोपकाचार्य : ३८५