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________________ सम्बोधतताणु भावना - यह एक उपदेशात्मक कृति है, इसमें ५७ पद्म है। सभी दोहे भावपूर्ण हैं । यहाँ उदाहरणार्थं कुछ दोहे प्रस्तुत हैं धर्म कारन प्राणि धमं धर्म नर उच्चरे, न धरे घर्मनो मर्म । निष्ठुर कर्म || ३ || हणे, न गणे X X गहे धर्म नूनाम | नते निज राम ||६|| X X X धर्मं धर्मं सहु को रास राम पोपट पढ़े, बूझे कहो, X X X सवली अप्रमाण । दया बोज विणजे क्रिया, ते शीतल संजल जल भर्या जेम जण्डाल न बाण ||१९|| X X X X नीचनी संगति परिहरो, धारो उत्तम आचार | दुर्लभ भव मानव तणो, जीव तूं आलिम हार ॥४०॥ नेमकुमार रास - इस कृति में नेमिनाथको वैवाहिक घटनाका वर्णन है । डा० कस्तूरचन्द काशलीवाल की सूचना के अनुसार इसकी पाण्डुलिपि उदयपुरके अग्रवाल दिगम्बर जैन मन्दिरके शास्त्र भण्डारमें सुरक्षित है । इम ग्रन्थको रचना वि० सं० १६७ में समाप्त हुई है। आचार्यने लिया है-संवत सोलताहोत्तरि, श्रावण सुदि गुरुवार । दशमी को दिन संपडो, रास रच्चो मनोहार || चित्त निरोधक्रथा बाहुबलि और सीमन्धर स्वामीगीत छोटी रचनाएँ हैं । इनमें नामानुसार विषयोंका अंकन हैं। चित्तविरोध कथामें चित्तको वश करनेका उपदेश दिया गया है । इस कृति में केवल १५ पद्य हैं । २५ वीरचन्द्रकी उपलब्ध रचनाओं में सभी रचनाएँ गुजराती मिश्रित राज - स्थानी में है । विषयसे अधिक महत्त्व भाषाका है । १६वीं शताब्दीकी हिन्दी भाषाका रूप अवगत करनेके लिये ये सभी रचनाएँ उपादेय है । सुमतिकीर्ति सुमतिकीति नामके दो भट्टारकोंका उल्लेख मिलता है। एक मट्टारक शुभचन्द्रके शिष्य और दूसरे भट्टारक ज्ञानभूषण के शिष्य हैं। 'उपदेशरत्नमाला' में भट्टारक शुभचन्द्रके शिष्य के रूपमें सुमतिकीतिका निर्देश आया है । भट्टारक श्रीशुभचन्द्रसूरिस्तत्पट्टपंके रुहतिज्मरश्मिः त्रै विद्यवंद्यः सकलप्रसिद्धो वादी मसिहो जयतात् परिण्यां ॥ प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोवकाचार्य : ३७७
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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