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________________ सत्पट्टपद्माकरभास्करोऽत्र देवेन्द्रकीतिर्मुनिचक्रवर्ती । तत्पादपङ्कजसुभक्तियुक्तो विद्यादिनन्दी चरितं चकार ।। तत्पादपट्टेऽजनि मल्लिभूषणगुरुश्चारित्रचूडामणिः संसाराम्बुधितारणकचतुरश्चिन्तामणिः प्राणिनाम् । सूरिश्रीश्रुतसागरो गुणनिधिः श्रीसिंहनन्दी गुरुः । सर्वे ते यतिसत्तमाः शुभतराः कुर्वन्तु वो मङ्गलम् ॥ इस प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि सूरत-शाखाके बलात्कारगणके आचार्योंमें देवेन्द्रकोतिके शिष्य विद्यानन्दि है। ग्रन्थके भारम्भमें भी गुरुपरम्पराका स्मरण किया गया है। विद्यानन्दिके गृहस्थ जीवन सम्बन्धी कोई भी वृत्तान्त ग्रन्थप्रशस्तियोंमें उपलब्ध नहीं होता है। केवल एक पट्टावलीमें 'अष्टशाखाप्राग्वाटवंशावतंस' तथा 'हरिराजकुलोद्योतकर कहा गया है, जिससे ज्ञात होता है कि ये प्राग्वाट पोरवाड़) जातिके थे तथा इनके पिताका नाम हरिराज था । पौरवाड़ जातिमें अथवा उसके निदी पक वर्ग में थाट शालाओंकी मान्यता प्रचलित रही होगी। इस जातिका प्रचार प्राचीनकालमें गजरात प्रदेशमें रहा है। इस प्रदेशकी प्राचीन राजधानी श्रीमाल थी। इश प्रागवाट जातिमें विद्यानन्दिके गुरुभट्टारक देवेन्द्रकीतिका विशेष सम्मान रहा है। इन्होंने पौरपाटान्वयकी अशाखावाले एक श्रावक द्वारा वि० सं० १४९३ में एक जिनमूर्तिकी स्थापना करायी थी। _ "संवत् १४९३ शाके १३५८ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ दिने मूलनक्षत्रे श्री मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ. श्रोप्रभाचन्द्रदेवाः तत्पट्टे वादिवादीन्द्र भ० पद्मनन्दिदेवाः तत्पटे श्रीदेवेन्द्रकीतिदेवाः पौरपाटान्वये अष्टशाखे आहारदानदानेश्वर सिंघई-लक्ष्मण तस्य भार्या अखसिरी कुक्षिसमुत्पन्न अर्जुन......" अतएव स्पष्ट है कि प्राग्वाट, पौरपाट और पोरवाड़ एक ही जातिके वाचक हैं। डॉ० हीरालालजी जैनका अनुमान है कि भटटारक देवेन्द्रकीर्ति भी इसी जातिमें उत्पन्न हुए होंगे और उन्हींके प्रभावसे विद्यानन्दि भी दीक्षित हुए होंगे। वि० सं० १४९९ के मूर्तिलेखमें उन्हें देवेन्द्रकीतिका शिष्य कहा गया है, पर वि० १. हा. हीरालास जैन, सुदर्शनचरित, सन् १९७०, श्लोक १२।४७-५० । २. भट्टारक सम्प्रदाय, सोलापुर, लेखांक ४३९ । ३. भट्टारक सम्प्रदाय, सोलापुर, लेखांक ४२५ । ४. सुदर्शनपरित, सम्पादक हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, सन् १९५० प्रस्तावना, पृ० १६ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३७१
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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