SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य शुभचन्द्र भट्टारक शुभचन्द्र विजयकीतिके शिष्य थे। इन्होंने भट्टारक ज्ञानभूषण और विजयकीति इन दोनों के शासनकालका दर्शन किया था। इनका जन्म वि० सं० १५३०-१५४० के मध्य में कभी हुआ होगा । शैशवसे इन्होंने संस्कृत, प्राकृत एवं देशी भाषाका अध्ययन प्रारम्भ किया था । व्याकरण, छन्द, काव्य, न्याय आदि विषयोंका पाण्डित्य सहज में ही प्राप्त कर लिया था। त्रिविधविद्याधर और षद्भाषाकविचक्रवर्ती ये इनकी उपाधियाँ थीं। इन्होंने अनेक देशों में विहार किया था । गौड, कलिंग, कर्नाटक तौलव, पूर्व, गुर्जर, मालव आदि देशोंके वादियोंको पराजित किया था । इनका धर्मोपदेश सुननेके लिए जनता टूट पड़ती थी । इन्होंने अन्य भट्टारकोंके समान कितने ही प्रतिष्ठा -समारोहोंमें भी सम्मिलित होकर धर्मको प्रभावना की थी। उदयपुर, सागवाड़ा, डूंगरपुर, जयपुर आदि स्थानोंके मन्दिरोंमें इनके द्वारा प्रतिष्ठित अनेक मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं । आचार्य शुभचन्द्रकी शिष्यपरम्परामें सकलभूषण, वर्णी क्षेमचन्द्र, सुमतिकीर्ति, श्रीभूषण आदिके नामोल्लेख मिलते हैं। इनकी मृत्युके पश्चात् सुर्मातकीति इनके पट्टपर आसीन हुए थे । स्थितिकाल डॉ० जोहरापुरकरने शुभचन्द्रका भट्टारककाल वि० सं० १५७३-१६१३ माना है | शुभचन्द्रकी मृत्युके पश्चात् सुमतिकीर्ति उनके पदपर आसीन हुए हैं और सुमतितिका समय वि० सं० १६२२ है । अतः भट्टारक शुभचन्द्रका जीवनकाल वि० सं० १५३५ - १६२० होना चाहिए। ४० वर्षों तक भट्टारक पदपर आसीन रहकर शुभचन्द्र ने साहित्य और संस्कृतिकी सेवा की है । इन्होंने त्रिभुवनकीर्तिके आग्रहसे वि० सं० १५७३ की आश्निी शुक्ला पञ्चमीको अमृतचन्द्रकृत समयसार कलशोंपर अध्यात्मतरंगिणी नामक टीका लिखी है । संवत् १५९० में ईडर नगरके षड्जातीय श्रावकोंने ब्रह्मचारी तेजपाल के द्वारा पुण्याश्रवकथा कोशकी प्रति लिखवाकर इन्हें भेंट की थी। संवत् १५८१ में इन्हीं के उपदेश से बड़जातीय श्रावक साह, होरा, राजू आदिने प्रतिष्ठामहोत्सव सम्पन्न किये थे । " संवत् १५८१ वर्षे पोष वदी १३ शुके धामूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलास्कारगणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ० श्री ज्ञानभुषण तत्पट्टे श्री भ० विजयकीति तत्पट्टे भ० श्री शुभचन्द्रगुरुपदेशात् बड़जाति साह हीरा मा० राजू ३६४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy