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सत सं० तारा द्वि० भार्या पोई सुत्त सं० माका भार्या हीरा दे..."भा० नारंग दे भ्रा० रत्नपाल भा-विराला दे सुत रखभदास नित्यं प्रणमति ।"
संवत् १५९९में डूंगरपुरके आदिनाथचैत्यालय में इन्हींके उपदेशसे अंगप्रज्ञप्तिको प्रतिलिपि करवाकर विराजमान की गयी थी । संवत् १६०७की वैशाख कृष्णा तत्तीयाको एक पंचपरमेष्ठीकी मूर्ति स्थापित की थी। संवत् १६०८ की भाद्रपद द्वितीयाको सागवाड़ामें 'पाण्डवपुराण' की रचना पूर्ण की थी । संवत् १६११ में करकण्डचरित और संवत् १६१३ में कार्तिकेयानुप्रेक्षाको टोका लिखी । इस प्रकार आचार्य शुभचन्द्रका जीवनकाल १५३५-१६२० तक आता है। रचनाएं
शुभचन्द्र ज्ञानके सागर एवं विद्याओं में पारंगत थे। ग्रन्थ-परिमाण और मूल्यको दृष्टिसे इनकी रचनाएं उल्लेखनीय हैं। संघ व्यवस्था, धर्मोपदेश एवं आत्मसाधनाके अतिरिक्त जो भी समय इन्हें मिलता था, उसका सदुपयोग इन्होंने ग्रन्थरचनामें किया है। वि० सं० १६०८ में इन्होंने पाण्डव-पुराणको रचना की है। इस ग्रन्थको प्रशस्तिसे अवगत होता है कि इस रचनाके पूर्व इनकी २१ कृतियां प्रसिद्ध हो चुकी थीं । संस्कृत और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में इनकी रचनाएं उपलब्ध हैं। संस्कृत-रचनाएं १. चन्द्रप्रभचरित
१३. अष्टानिकाकथा २. करकन्डरित
१४. कर्मदहनपूजा ३. कीर्तिकेयानुप्रेक्षाटीका १५. चन्दनषष्ठीव्रतपूजा ४. चन्दनाचरित
१६. गणधरवलयपूजा ५. जीवन्धरचरित्त १७. चारित्रशुद्धिविधान ६. पाण्डवपुराण
१८. तीसचौबीसोपूजा ७. श्रेणिकचरित
१९. पञ्चकल्याणकपूजा ८. सज्जनचित्तवल्लम २०. पल्लीव्रतोद्यापन ९. पाश्र्वनाथकाव्यपञ्जिका २१. तेरहतीपपूजा १०. प्राकृतलक्षण
२२. पुष्पाञ्जलिव्रतपूजा ११. अध्यात्मतरंगिणी २३. साढवयद्वीपपूजा १२. अम्बिकाकल्प
२४. सिद्धचक्रपूजा हिन्दी रचनाएँ १. महावीरछन्द
३. गुरुछन्द २. विजयकीतिछन्द
४. नेमिनापछन्द
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३६५