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________________ है, पर डूंगरपुरवाले अभिलेखसे ज्ञात होता है कि मानभूषण वि० सं० १५३१ या इसके पहले ही भट्टारक गद्दीपर आसीन हए थे। इन्होंने वि० सं० १५६० में 'तत्त्वज्ञानतरंगिणी की रचना की है, जिसकी पुष्पिकामें इनके नामके पूर्व 'मुमुक्षु' शब्द जुड़ा हुआ मिलता है। इससे यह ध्वनित होता है कि वि० सं० १५६० या उसके दो-एक वर्ष पूर्ण हो मे भट्ताकद छोड़ के अन्य अभिलेखोंसे यह ज्ञात होता है कि वि० सं० १५५७ तक ये निश्चितरूपसे भट्टारक पदपर आसीन रहे हैं। इसके पश्चात् ये अपने शिष्य विजयकोतिको भट्टारक पदप र प्रतिष्ठित कर स्वयं साहित्यसाधनामें प्रवृत्त हुए हैं। भट्टारक पदपर प्रतिष्ठित होते ही ज्ञानभूषणके कार्यकाल में अनेक महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठाएं सम्पन्न हुई हैं। इन्होंने १५३१में डूगरपुरमें सहस्रकूट प्रतिष्ठाका संचालन किया । १५३४ फाल्गुन शुक्ला दशमोमें आयोजित प्रतिष्ठा महोत्सबके समय प्रतिष्ठित की गयी मतियां अनेक स्थानोंपर आज भी प्राप्त होती है। वि० सं० १५३५में इन्होंने दो प्रतिष्ठाओंमें भाग लिया था। एक प्रतिष्ठाका निर्देश जयपुरके छाबड़ोंके मन्दिरमें और दूसरोका उल्लेख उदयपुरके मन्दिरमें मिलता है। वि० सं० १५४० में हंवड़ जाति श्रावक लाखा एवं उसके परिवारने इन्हींके आदेशसे आदिनाथस्वामीकी प्रतिष्ठा करायी थी। इनके तत्त्वावधान में वि० सं० १५४३, १५४४ एवं १५४' में विविध प्रतिष्ठा-महोत्सव सम्पन्न हुए थे। वि० सं० १५५२में एक बृहद् आयोजन हुआ, जिसमें भट्टारक ज्ञानभूषण सम्मिलित हुए थे। वि० सं० १५५७ तक सम्पन्न हुई प्रतिष्ठाओंमें इनके सम्मिलित होनेके उल्लेख प्राप्त होते हैं। वि० सं० १५६० और १५६१में सम्पन्न हुई प्रतिष्ठाओंमें इनके शिष्य भट्टारक विजयकीतिका उल्लेख मिलता है ! यथा___ "संवत् १५६० वर्षे श्री मूलसंधे भट्टारक श्री ज्ञानभूषण तत्पट्टे भ० श्री विजयकोतिगुरूपदेशात् बाई श्रीग्रोद्धन श्रोबाई श्रीविनय श्रोविमान पंक्तियतउद्यापने श्रीचन्द्रप्रभ"....." "संवत् १५६१ वर्षे चैत्र वदो ८ शुक्र श्री मूलसंधे सरस्वतीगच्छे भट्टारक श्री सकलकोति तत्पट्टे भ० श्री भवनकोति तत्पट्टे भ. श्रीज्ञानभूषण तत्पट्टे भ० विजयकात्तिगुरुपदेशात् हवड ज्ञातीय श्रेष्ठि लखमण भार्या मरगदी सुत श्रे० समथर भायों मचकू सुत श्रे० गंगा भार्या वल्लि सुत हरखा होरा झठा नित्यं श्री आदोश्वर प्रणमंति बाई मचक पिता दोसो रामा भार्याः पूरी पुषी रंगी एते प्रणमति ।" अतएव भट्टारक ज्ञानभूषणका समय वि० सं० १५००-१५६२ है। प्रभुताचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३५१
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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