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________________ देशके अनेक अज्ञजनोंको उद्बोधित करनेवाले, मालव देशके भव्योंके हृदयकमलको विकसित करनेके लिए सूर्यके समान, मेवात देशके अन्यान्य विज्ञ उपासकोंको अपने आध्यत्मिक व्याख्यानोंसे रजित करनेवाले, कुरुजांगल देशके प्राणियोंके जान लेंगको स्टार के लिए वैद्यके समान, तुरब देशमें षड्दर्शन न्याय आदिके अध्ययनसे उत्पन्न अखर्व गर्वको दबाकर विजय प्राप्त करनेवाले, विराट् देशमें उभय मार्गको प्रदर्शित करनेवाले, नमियाड़ देशमें जिनधर्मकी अत्यन्त प्रभावना और नव हजार उपदेशकोंको नियत करनेवाले, रंग, राट, हड़ी, वटो, नाग और चाल आदि अनेक जनपदोंमें ज्ञानप्रचारके लिए विहार करनेवालं श्रीमलसंघ बलात्कारगण सरस्वतीगच्छके दिल्ली सिंहासनके अधिपति, अपने प्रतापसे दिङमण्डलका आक्रमण करनेवाले, अष्टांगयुक्त सम्यक्त्व आदि अनेक गणगणसे अलंकृत और श्रीमान् इन्द्रादि भूपालोंसे पूजित चरणकमलवाले, गजान्तलक्ष्मी, ध्वजान्तपुण्य, नाटधान्तभोग, समुद्रान्तभूमिभागके रक्षक, सामन्तोंके मस्तकसे घृष्ट चरणवाले श्री देवरायसे पूजितपादपनवाले, जिनधर्मके आराधक मुदितपालराय, रामनाथराय, बोम्मसराय, कल्पराय, पाण्डुराय आदि अनेक राजाओंसे चचित चरणयुगलवाले, अनेक तीर्थयात्राओंको सम्पन्न करनेवाले, मोक्षलक्ष्मीको वशीभूत करनेवाले, रत्नत्रयसे सुशोभित शरीरवाले, व्याकरण, छन्द, अलंकार, साहित्य, न्याय और अध्यात्मप्रमुख शास्त्ररूपी मानसरोवरके राजहंस, शद्धध्यानरूपी अमतपानको लालसा करनेवाले और वसुन्धराके आचार्य श्रीमद्भट्टारकवर्य श्रीज्ञानभूषण हुए' !" स्थितिकाल आचार्य ज्ञानभूषण भट्टारक भुवनकोतिके पश्चात् सागवाड़ाके पट्टपर आसोन हुए। इनका प्राचीन उल्लेख निम्नलिखित मूर्तिलेखमें पाया जाता है_ "संवत् १५३१ वर्षे वैसाख ददो ५ बुधे श्रीमूलसंघे भ० श्रीसफलकोतिस्तत्पट्टे भ० भुवनकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीज्ञानभूषणदेवस्तदुपदेशात् मेघा भार्या टीगू प्रणमंति श्री गिरिपुरे रावल श्री सोमदास राज्ञी गुराई सुराज्ये" अर्थात् वि० सं० १५३१ वैशाख कृष्णा द्वितीयामें इनके सान्निध्य में यह प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई है। श्री जोहरापुरकरने ज्ञानभूषणका भट्टारक-काल १५३४ माना है, पर यह समय युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता। डॉ० प्रेमसागरने अपने हिन्दी जैनभक्तिकाव्य और कवि'में इनका समय वि०सं० १५३२-१५५७ माना १. शुभचन्द्र पट्टालि, अनुच्छेद ९ । २. भट्टारक सम्प्रदाय, सोलापुर, १० १५८ । ३, हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, भारतीय ज्ञानपीठ, पृ० ७३ । ३५० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-पराम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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