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अपेक्षा लाघवको महत्त्व दिया है और कई नये शब्द दिये गये हैं। तिङन्त प्रकरणमें "क्रियाओं धातुः' सूत्रको धातुसंज्ञक अधिकारसूत्र बतलाया है और पाणिनिकी लकारप्रक्रियाके अनुसार क्रियारूपोंका साधुत्व दिखलाया गया है। कृदन्तप्रकरण पाणिनिके तुल्य होनेपर भी नियमनमें कई विशेषताएँ हैं। इस प्रकार शाकटायन-शब्दानुशासन कई मौलिक मान्यताओंसे सम्पृक्त है । स्त्रीमुक्ति-प्रकरण इसे दुकान ग्र-
प्र सारिकाएं हैं। वाकटायनने श्वेताम्बर सम्प्रदायानुसार मान्य तर्क द्वारा स्त्रीमुक्तिका समर्थन किया है। प्रभाचन्द्राचार्यने प्रमेयकमल-मार्तण्ड नामक अपने तकग्रन्थमें इन कारिकाओंको पूर्वपक्षके रूपमें उपस्थितकर स्त्रीमुक्तिका निरसन किया है। यहाँ उदाहरणार्थ कुछ कारिकाएँ प्रस्तुत की जाती हैं
अस्ति स्त्रीनिर्वाणं पुंवत्, यदविकलहेतुकं स्त्रीषु । म विरुध्यति हि रत्नत्रयसंपद् निर्वृतहतुः । रत्नत्रय विरुद्ध स्त्रीत्वेन यथाऽमरादिभावेन ।
इति वाङ्मात्र नात्रं प्रमाणमाप्ताऽऽगमोज्यद् वा ॥ केवलिभुक्ति-प्रकरण
इसमें ३७ कारिकाएँ हैं। प्रभाचन्द्रने पूर्वपक्षक रूपमें केवली-कवलाहारखण्डन में इसी ग्रन्थकी कारिकाओंको उद्धृत किया है। कारिकाएँ तार्किकली में लिखी गयी हैं । यहाँ दो-तीन कारिकाएँ उद्धृत की जाती है
अस्ति च केवलिभुक्तिः समग्रहेतुर्यथा पुरा भुक्तेः । पर्याप्ति-वेद्य-तैजस-दीर्घायुष्कोदयो हेतुः ॥१॥
आहारविषयकाङ्क्षारूपा क्षुद् भवति भगवति बिमोहे । कथमन्यरूपताऽस्या न लक्ष्यते येन जायेत ॥ ६ ॥ x x
x न क्षुद् विमोहपाको यत् प्रतिसंख्यानभावननिवर्तया । न भवति विमोहमाकः सर्वोऽपि हि तेन विनिवर्त्यः ।।७।।
१. स्त्रीमुक्ति प्रकरण, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, शाफ्टायनव्याकरणके अन्तर्गत.
कारिका २, ३ । २. केवलभुक्तिप्रकरण, का० १,६,७। भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, शाकटायन
व्याकरणके अन्तर्गत ।
२४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा