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________________ राजशेखरने पाल्यकीतिके वचनोंको उद्धृत किया है, जिससे अवगत होता है कि इनका कोई काव्यशास्त्रसम्बन्धी ग्रन्थ भी रहा है। बताया है.--"वस्तुका स्वरूप चाहे जैसा भी हो, सरसता तो कविकी प्रकृतिके आधारपर है । अर्थात् कविको प्रकृति सरस है, तो उसे सरस बना देता है और कामको प्रकृति रूक्ष या नीरस हो, तो सरस वस्तु भी नीरस हो जाती है। अनुरक्त व्यक्ति जिस वस्तुकी स्तुति करता है, विरक्त व्यक्ति उसीको निन्दा करता है और मध्यस्थ व्यक्ति उस सम्बन्धमें उदासीन रहता है। बताया है-"यथा तथा वास्तु वस्तनो रूप, वक्तुप्रकतिविशेषायत्ता तु रसवत्ता। तथा च यमर्थ रक्तः स्तोति तं विरक्तो बिनिन्दति मध्यस्थस्तु तत्रोदास्ते इति पाल्यकोतिः ।" वादीसिंह श्रेण्य-गद्य-संस्कृत-साहित्यमें जो स्थान महाकवि बाणका है, जन-संस्कृतगद्य-साहित्यमें वही स्थान वादीभसिंहका । कवि बादीसिंहने गद्यचिन्तामणि जैसा गद्यकाव्यका उत्कृष्ट ग्रन्थ लिखकर जैन संस्कृत-काव्यको अमरत्व प्रदान किया है। डॉ० कोषने लिखा है 'कादम्बरीसे प्रतिस्पर्धा करनेका दसरा प्रयत्न ओडयदेव ( बादीसिंह ) के गद्यचिन्तामणिमें परिलक्षित होता है। उनका उपनाम वादीसिंह था । वे एक दिगम्बर जैन थे और पूष्पसेनके शिष्य थे। जिनकी प्रशंसा इन्होंने अपनी रचनामें अत्युक्तिपूर्ण शैलीमें की है। इनकी रचनाका सम्बन्ध जीवक अथवा जीवन्धरके उपाख्यानसे है, जो जीवन्धरचम्पका भी प्रतिपाद्य विषय है। इन्होंने बाणका अनुकरण किया है, यह बात बिल्कुल स्पष्ट है। मनोषी शुकनास द्वारा युवक चन्द्रापीडको दिये गये उपदेशको अधिक सुन्दररूपमें प्रस्तुत करनेका प्रयत्न भी सम्मिलित है।' कविका वादीसिंह यह नाम वास्तविक नाम नहीं, उपाधिप्राप्त नाम हैं। वास्तविक नाम तो ओडयदेव है। गर्याचन्तार्माणको तंजौर वाली पाण्डुलिपि की प्रशस्तिम' यही नाम अंकित मिलता है । यद्यपि प्रशस्तिके ये पद्य सभी पाण्डुलिपियोंमें नहीं मिलते, तो भी उपलब्ध पाण्डुलिपिके प्रशस्ति-पद्योंकी १. History of sanskrit Litrature by Keith, London. 1941, Page 331. २. श्रीमद्वादीभसिंहेन गद्यचिन्तामणिः कृतः । स्थेयादोडयदेवेन चिरायास्थानभूषणः । स्थेयादोडयदेवेन वादीभहरिणा कृतः । गद्यचिन्तामणिलॊके चिन्तामणिरिवापरः ॥ --गधचिन्तामणि प्रशस्ति, पृ. २५७, श्रीरंगम् १९१६ ई० । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकापार्य ; २५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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