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"तत्पट्टाभरणानेकदक्षमोरव्यनिष्पादन सकलकलाकलाप कुशल रत्नसुवर्णरौप्य पित्तला श्मप्रतिमा-तन्त्रप्रतिष्ठायात्राचंनविधानोपदेशाज्जितकोत्तिक पूंरपूरितत्रैलोक्यविवरणानाम्, महातपोधनानां श्रीमद्भुवनकीर्तिदेवानाम् ।
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सकलकार भूषणतुल्याएको र बर्ग, रौप्य, पित्तल, पाषाणकी प्रतिमा, यन्त्र और प्रासादमन्दिरकी प्रतिष्ठा और अर्चनविधानजस्य कीति कर्पूर से त्रिभुवनविवरको पूरित करनेवाले महातपस्वी श्री भुवनकीर्त्तिदेव हुए |
भुवनको तिने ग्रन्थरचना के साथ-साथ प्रतिष्ठाएं भी कराया थीं। वि० सं० १५११ मे इनके उपदेशसे हूबड़ जातीय श्रावक करमण एवं उसके परिवारने चौबोस प्रतिमा स्थापित की थी ।
सं० १५१३ में इन्हींके तत्वावधानमं चतुर्विंशतिप्रतिमाको प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी ।
स० १५१५ में गंधारपुरमें प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी तथा इन्हीके उपदेशसे जूनागढ़ में एक शिखरवाले मन्दिरका निर्माण कराया गया और उसम बालुकी आदिनाथस्वामीकी प्रतिमा प्रतिष्ठित की गयी। इस उत्सव में सौराष्ट्र के छोटेबड़े राजा-महाराजा भी सम्मिलित हुए थे । भुवनकांति इसमें मुख्य अतिथि थे।
सं० १५२५ मं नागदहाजाति, श्रावक पूजा एवं उसके परिवारवालोन इन्हींके उपदेश से आदिनाथस्वामीको धातुमय प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी 1
सं० १५२७ में वैशाख कृष्ण एकादशाको भुवनकोत्तिने बणजातीय जयसिंह आदि श्रावको बाकी रत्नत्रय चौबीसी प्रतिष्ठित कराया थी ।
रचनाएँ
आचार्य भुवनकी तिने 'जीवन्धररात', 'जम्बूस्वामोरारा' और 'अञ्जनाचरित' ग्रन्थ उपलब्ध हैं । 'जीवन्ध र रास' में जीवन्धरके पुण्यचरितका और जम्बूस्वामी रासमें जम्बूस्वामी के पावनचरितका रासशैली में अकन किया गया
१. शुभचन्द्र पट्टावलि, अनुच्छेद ८ ।
२. संवत् १५११ वर्षे वैशाख बदी
श्रीशांतिनाथ नित्यं प्रणमति ।
३. संकलकी तिनूरास, पद्म १९-२१ ।
४. संवत् १५२७ वर्षे वैशाख वदी ११ उपदेशात् बड ब्रह्म जयसिंग भार्या भूरी
बुधे श्रीमूलसं मट्टारक श्री भुवनकीति सुतधर्मा भार्या हीरु भ्राता वीरा भार्या
मरगदी सुत माड्या भूवर खीमा एते श्री रत्नत्रयचतुविंशतिका नित्यं प्रणमति ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य: ३३७