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________________ शैली में लिखा गया है । अष्टम सर्गमें सुदर्शनको आराधना रूपक अलंकारमें चित्रण किया है । भाषा सरल और कथा रससे परिपूर्ण है। सूक्तियाँ और धर्मोपदेश पर्याप्त मात्रामें हैं। श्रीपालचरित ____ इसमें कोटीभट्ट श्रीपालके जीवनको प्रमुख विशेषताओंका वर्णन आया है। समस्त कथावस्तु ७ सर्ग या परिच्छेदोंमें विभक्त है। श्रीपालका राजासे कुष्ठी होना, समुद्र में गिरना, शूलीपर चढ़ना आदि कितनी ही ऐसो घटना हैं, जो पाठकों के मन में कौतुहल जागृत करती हैं। कविने नाटकीय ढंगसे घरनाओंका नियोजन किया है। इस चरितकाव्यको रचना कर्मफर के सिद्धान्तको प्रतिष्ठित करने के लिए की गयी है। विश्वके समस्त प्राणी हार्मकृतफलको प्राप्त करते हैं। निकाचितकर्म फल दिये बिना नहीं रहते हैं। काव्यको भाषा सरल और परिमार्जित है। मूलाचारप्रदीप __ यह आचारसम्बन्धी ग्रन्थ है। इसमे मुनिक जावनका समस्त क्रियाओं, विधिओं और साधनाओंका निरूपण किया गया है। इस ग्रन्थमें १२ अधिकार हैं, जिनमें २८ मूलगुण, पंचआचार, दशलक्षणधर्म, द्वादशानुप्रेक्षा एवं द्वादशतपोंका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । प्रश्नोत्तरोपासकाचार इस ग्रन्थमें श्रावकोंके आचारधर्मका वर्णन है। इसमें २४ परिच्छेद हैं । मूलगुण, द्वादशवत, अणुव्रत, गुणव्रत शिक्षावत आदिका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । इस ग्रन्थकी विशेषता यह है कि भट्टारक सकलकातिने श्रद्धालु भक्तोंके आचाविषयक प्रश्नोंका समाधान करनेके लिए इस ग्रन्धकी रचना की है। आदिपुराण ____ इस पुराणमें भगवान आदिनाथ, भरत, बाहुबलि, सुलोचमा, जयकुमार आदिके जीवनवृत्तका वर्णन किया गया है। यह २० सर्गौम विभक्त है और इसमें ४६२८ पद्य हैं। इस कृतिका दूसरा नाम वृषभनाथचरित भी है। प्रधानतः इसमें आदि तार्थंकर ऋषभदेवका जोवन वणित है । उत्तरपुराण प्रथम तीर्थंकरको छोड़ शेष २३ तीशंकरोंका जीवनवृत्त इस पुराणमें वर्णित है। माथ ही इसमें चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण आदि शलाकापुरुषों के जीवन भी अंकित हैं। इसमें १५ अधिकार है। प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३३३
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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