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यह रचना सस्कृत भाषाम है। इसमें माह स हैं। इन हिंसाका महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। धन्यकुमारचरित
इस चरितकाव्यमें धन्यकुमारको कथा वर्णित है। इसमें सात सर्ग या अधिकार हैं। कविने घटनाओंको काव्यशैलीमें प्रस्तुत किया है और धन्यकुमारके जोवनकी कौतुहलपूर्ण घटनाओंको काव्यात्मक रूपमें उपस्थित किया है। सुकुमालचरित
इस काव्यमें सुकूमालके जीवनका पूर्वभवसहित वर्णन किया गया है । सम्पूर्ण कथा-वस्तु ९. सर्गों में विभक्त है। पूर्वभवमें किया गया बैरभाव जन्मजन्मान्तरमें कितना कष्टकारी होता है, इसका चित्रण इस काव्य में सुन्दररूपमें किया है । सुकुमाल दैभवपूर्ण जीवनयापन करता है, पर मुनि अवस्थामें अत्यन्त घोर तपश्चरण कर आत्मशद्धि लाभ करता है। सुदर्शनचरित ___ इस चन्तिकाव्यमें सेठ सुदर्शनका जीवनवृत्त वर्णित है और कथावस्तु ८ परिच्छेदों में विभक्त है। शोलनतके पालन में सुदर्शनको दृढ़ताका चित्रण बड़े ही सुन्दर रूपमें हुआ है | कविने अन्तर्द्वन्द्वोंका विकास बड़े ही सुन्दर रूपमें किया है। कपिलाके यहाँ सुदर्शनके पहुंचनेपर एवं कपिला द्वारा कमोत्तेजनाओंके उत्पन्न होनेपर भी सुदर्शनकी दृढ़ता किसके हृदयको स्पर्श नहीं करती। अभया रानी सूदर्शनको विचलित करनेका प्रयास करती है, पर वह सुमेरुकी चट्टानके समान दृढ़ रहता है । सुदर्शनके चरित्रको यह दृढ़ता और शीलकी अटलता काव्यका उदात्तीकरण है। कविने मुनि अवस्थामें पाटलीपुत्र देवदत्ता गणिका द्वारा जो उपसर्ग दिखलाये हैं या जिन कामचेष्टाओंका वर्णन किया है, वे पूनरुक्त जैसी प्रतीत होती हैं। शीलके चित्रणमें आठों कारकोंका नियोजन किया गया है--
शीलं मुक्तिवधूप्रियं भव शीलं सशीलाः श्रिताः शालेनात्र समाप्यत शिवपदं शोलाय तस्मै नमः । शोलान्नास्त्यपरः सुधर्मजनकः शीलस्य सर्वे गुणाः
शोले चित्तमनारतं विदधतं मां शील मुक्ति नय ।।३।१३० संक्षेपमें यही कहा जा सकता है कि यह चरितकाव्य काव्य मुणोंसे युक्त उदात्त ३३२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा