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________________ तीर्थंकर शान्तिनाथका जीवनवृत्त अंकित है। काव्यचनत्कार यत्र-तत्र पाया जाता है । महाकाव्यत्व के स्थानपर पौराणिकताका ही समावेश हुआ है । २. बर्द्धमानचरित इस चरितकाव्य में अन्तिम तीर्थंकर वर्द्धमानके पावन जीवनका वर्णन किया गया है। कथावस्तु १९ सर्ग या अधिकारोंमें विभक्त है। प्रथम छह मुर्गी में महावीर के पूर्व भवोंका और शेष १३ सर्गों में गर्भकल्याणकसे लेकर निर्वाणकल्याणक तक विभिन लोकोत्तर घटनाओंका विस्तृत वर्णन मिलता हैं। भाषा सरल और काव्यमय है । ३ मल्लिनाथचरित इस चरितकाव्यमें ७ सर्ग या परिच्छेद हैं और ८७४ श्लोक हैं । इसमें तीर्थंकर मल्लिनाथका चरित वर्णित है । ग्रन्थकर्त्ताने आरम्भ में मल्लिनाथ स्वामीको ही नमस्कार किया है- नमः श्री मल्लिनाथाय कर्ममल्लविनाशिने । अनन्तमहिमाप्ताय त्रिजगत्स्वामिनेऽनिशं ॥ शेषान् सर्वान् जिनानुवन्दे धर्मचक्रप्रवर्तकान् । विश्वभव्य हितो क्तान् पंचकल्याणनायकान् ।। -- प्रथम सर्ग, पद्य १, २ कवि वस्तुवर्णन में भी कुशल है । अनुष्टुप् जैसे छोटे छन्द में ग्राम, नगर, परिखा, ऋतु सरित, वसन्त आदिका चमत्कारपूर्ण वर्णन करता है। वीतशोका नगरी, विस्तीर्ण खाइयों, ऊंचे परकोटों और तोरणों आदिके वर्णन में उत्प्रेक्षाका प्रयोग चमत्काररूपमें किया गया है। दीर्घखातिक्रया तुङ्ग शालगोपुरतोरणेः । मनोज्ञेयं दभाज्जंबूद्वीपवेथब्धदत्तराम् ॥ पुण्यचद्धामकूटाग्रध्वज हस्तैर्मरुद्वशेः । नाकिनामाह्वयतीव मुक्तये यद्भुवस्तराम् || - प्रथम सर्ग पद्य १९, २० इस काव्य में दान, अहिंसा, रत्नत्रय, भक्ति, पूजा आदिका भी वर्णन आया है । काव्यतत्त्वके साथ दर्शनतत्त्वको अवगत करने के लिए यह रचना महत्त्वपूर्ण है । यशोधरचरित यशोधरकी कथा अत्यन्त लोकप्रिय रही है । इस कथाको आधार मानकर अनेक जैन कवियो विभिन्न भाषाओं में काव्योंकी रचना की है | सकलकीर्तिकी प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषनाचार्य ३३२
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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