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सद्भाषितावली
इस सुभाषित ग्रन्थ में धर्म, सम्यक्त्व, मिथ्यात्व इन्द्रियजय स्त्रीसहवास, कामसेवन, निग्रन्थसेवा, तप, त्याग, राग-द्वेष, कोध, लोभ, मोह आदि विभिन्न विषयोंका विवेचन किया है। इसमें कुल ३८९ पद्य हैं। सभी पद्य उपदेशप्रद ई. --
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सर्वषु जीवेषु दया कुरु त्वं सत्यं वचो ब्रूहि धनं परेषाम् | चाब्रह्मसेवा त्यज सर्वकाल, परिग्रह मुंच कुयोनिबाज ||
पार्श्वनाथपुराण
इसका दूसरा नाम पार्श्वनाथचरित भी है। इसमें २३ वें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ के जीवनका वर्णन है । कथाका आरम्भ वायुभूतिके जीवनसे हुआ है । वायुभूति अपनी साधना द्वारा पार्श्वनाथ बन निर्वाण प्राप्त करता है । समस्त कथावस्तु २३ सर्गों में विभक्त है ।
सिद्धान्तसारदीपक
यह रचना करणानुयोगसम्बन्धी है । इसमें उर्ध्वलोक, मध्यलोक एवं अधोलोक इनसानों लोकोंका एवं इन तीनों लोकोंमें निवास करनेवाले देव, मनुष्य, तिर्यंच और नारकियों का विस्तृत वर्णन किया है । "तिलोयपण्णत्त' और 'त्रिलोकसार के विषयको इस कृति में निबद्ध किया गया है । इसका रचनाकाल वि० सं० १४८१ और रचनास्थान बडालो नगर है । समस्त ग्रन्थ १६ अधिकारोंमें विभक्त है ।
व्रतकथाकोश
इस ग्रन्थमें विभिन्न व्रत सम्बन्धी कथाएं निबद्ध की गयी हैं । व्रतपालन द्वारा जिन व्यक्तियोंने अपने जीवन में विभूतियाँ प्राप्त की हैं, उन व्यक्तियोंके आख्यानों का वर्णन इस कथाकोशग्रन्थ में किया गया है।
पुराणसारसंग्रह
प्रस्तुत ग्रन्थ में आदिनाथ, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्द्धमान इन छह तीर्थंकरोंके चरितांको निबद्ध किया गया है। तीर्थंकरोंका जोवनवृत्त अत्यन्त संक्षेपमें लिखा गया है।
कर्मविपाक
यह ग्रन्थ संस्कृतगद्य में लिखा गया है। इसमें आठ कर्म तथा उनके १४८ भेदों
३३४ कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा