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________________ ५. बर्द्धमानचरित-इस संस्कृतग्रन्थमें तीर्थंकर वर्द्धमानका इतिवृत्त वणित है। पद्यसंख्या अनुमानत: ३०० है । सदिग्ध ग्रन्शीको सम्बन्धम कुछ नहीं कहा जा सकता है। आचार्य पमनन्दिकी रचनाओं में भक्तिसम्बन्धी आदर्श उच्च कोटिका पाया जाता है । __ भट्टारक सकलकीर्ति विपुल साहित्य निर्माणकी दृष्टिसे आचार्य सकलकीतिका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने संस्कृत एवं प्राकृत वाङ्मयको संरक्षण ही नहीं दिया, अपितु उसका पर्याप्त प्रचार और प्रसार किया। हरिवंशपुराणको प्रशस्तिमें ब्रह्मजिनदासने इनको महाकवि कहा है तत्पपङ्कजविकासमास्वान् बभूव निर्ग्रन्थवरः प्रतापो । महाकवित्वादिकलाप्रवीणः तपोनिधि: श्रीसकलादिकीतिः ।। इससे स्पष्ट है कि इनकी प्रसिद्धि महाकवीश्वर के रूप में थी। आचार्य सकलकोतिने प्राप्त आचार्यपरम्पराका सर्वाधिकरूपमें पोषण किया है। तीर्थयात्राएँ कर जनसामान्य में धर्मके प्रति जागरूकता उत्पन्न की और नवमंदिरोंका निर्माण कराकर प्रतिष्ठाएं करायीं । आचार्य सकल कीतिने अपने जीवनकालमें १४ बिम्बप्रतिष्ठाओंका संचालन किया था। गलियाकोटमें संघपति मूलराजने इन्हींके उपदेशसे चतुर्विशति जिनबिम्बकी स्थापना की थी। नागदह जातिके श्रावक संघपति ठाकुरसिंहने भी कितनी ही विम्बप्रतिष्ठाओंमें योग दिया। आबूम इन्होंने एक प्रतिष्ठा महोत्सवका संचालन किया था, जिसमें तीन चौबीसोको एक विशाल प्रतिमा परिकरसहित स्थापित की गयी थी। निःसन्देह आचार्य सकलकोतिका असाधारण व्यक्तित्व था। तत्कालीन संस्कृत, अपभ्रश, राजस्थानी आदि भाषाओपर अपूर्व अधिकार था। भट्टारक सकलभूषणने अपने उपदेशरत्नमाला नामक ग्रन्थको प्रशस्तिमें सकलकोतिको अनेक पुराणग्रन्थों का रचयिता लिखा है। भट्टारक शुभचन्द्रने भी सकलकोतिका पुराण और काव्य ग्रन्थोंका रचयिता बताया है। लिखा है__ 'ताच्छष्याग्रेसरानेकशास्त्रपयोधिपारप्राप्तानाम, एकावलि-द्विकालि-कनका. बलि - रत्नावलि - मुक्तावलि - सर्वतोभद्र-सिंहविक्रमादिमहातपोवज्रनाशितकर्मपर्वतानाम् , सिद्धान्तसार-तत्त्वसार-यत्याचाराद्यनेकराद्धान्तविधातृणाम्, मिथ्यात्वतमोविनाशकमाण्डिानाम्, अभ्युदयपूर्वनिर्वाणसुखावश्यविधायि-जिनधर्मा. म्बुधिविवर्द्धनपूर्णचन्द्राणाम्, यथोक चरित्राचरणसमर्थननिग्रंथाचार्यावर्याणाम श्रीश्रीश्रीसकलकीत्तिभट्टारकाणाम् ।' १. शुभचन्द्राचार्यपट्टावलि, ७ अनुच्छेद । ३२६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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