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कवि आचार्य आतंक, शोक और जन्म-मरणको उत्तंग शेलका रूपक देकर सांसारिक कष्टोंकी अभिव्यंजना करते हुए कहते है कि इस उत्तुग शैलपर बारबार चढ़ने और उतरनेके महान कष्टके कारण में कठिन संतापसे पीड़ित हूँ। अतएव प्रभो ! मैं आपके वचनरूपी पवित्र निर्मल सरोवर में प्रवेश करता है। जिस प्रकार पर्वतार बार-बार चढ़ने और उतरनेसे अनेक प्रकारका संताप होता है और उस संतापको दूर करनेके लिए स्नानादि अनेक क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं, इसी प्रकार जन्म-मरण, रोग-शोक आदिको दूर करनेके लिए भगवान् जिनेन्द्रके वचनोंका अवलम्बन लेनेसे शान्ति प्राप्त होती है
आतंक शोक-मरणोद्भव-तुंगशैल
__ रोहाऽवरोहकरणेमम पीडितस्य । दुरितापहनये भवताजिनेश !
युष्मद्वचः शुचि-सुधा-सरसि प्रवेशः ॥१५॥ कवि भावविभोर होकर गगनले प्रार्थना पता हुमाकाहाना है कि भो! जो आपकी पाषानिमित मूर्तिका ध्यान करता है वह भी संसारमें पतनसे बच जाता है फिर जो आपके ज्ञानात्मक रूपका ध्यान करेगा, वह किस फलको प्राप्त होगा, यह कहा नहीं जा सकता है
प्रावादि-निम्मित-शुभप्रतिमासु यस्त्वां
ध्यायत्यमर्त्य-पतितामुपयाति सोऽपि । ज्ञानात्मक तु भजतां भवत: स्वरूपं
कीदृक्कियत्फलमलं तदहं न जाने ॥ ३. श्रावकाचारसारोद्धार- इसमें तीन परिच्छेद हैं। तृतीय परिच्छेदके अन्तमें लिखा गया है-'इति श्रावकाचारसारोद्वारे श्रीपद्धन्दिमनिविरचिते द्वादशप्रतवर्णनो नाम तृतीयः परिच्छेदो समाप्त:" । इस ग्रन्थमें गृहस्थविषयक . आचारका वर्णन किया गया है। इस श्रावकाचारके प्रणयनकी प्रेरणा लम्बकञ्चककुलान्वय साहू बासाधरसे प्राप्त हुई थो । साहू बासाघरके पितामह 'गोकर्ण'ने 'सूपकारसार' नामक ग्रन्थको रचना की थी। गोकर्णके पुत्र सोमदेव हुए। इनकी धर्मपत्नोका नाम प्रेमा था। इनके सात पुत्रों में बासाधर सबसे बड़े पुत्र' थे।
४. अनन्तवतकया---इसमें ८५ पद्य हैं। अनन्तचतुर्दशीके व्रतको सम्पन्न करनेवाले फलाधिकारी व्यक्तिको कथा वणित है। अन्तम कविने अपना परिचय भी दिया है। ९. इसका पाण्डुलिपि आमेरक शास्त्र भण्डारमें है।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३२५