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________________ ' सं० १४६५ ( ई० सन् १४०८) और वि० सं० १४८३ ( ई० सन् १४२६ ) के विजीलिया शिलालेखों में इनकी प्रशंसा की गयी हैं और वहाँ मानस्तम्भों में इनकी प्रतिकृति अंकित मिलती है । टोडानगर में भूगर्भ से २६ दिगम्बर जैन प्रतिमाएँ उपलब्ध हुई हैं, जिन्हें वि० [सं०] १४७० ( ई० सन् १४१३) में प्रभाचन्द्र के प्रशिष्य और मट्टारक पद्मनन्दिके शिष्य भट्टारक विशालकीर्त्तिके उपदेशसे खण्डेलवाल जातिके गंगेलवाल गोत्रीय किसी श्रावकने प्रतिष्ठित कराया था । इससे स्पष्ट है कि भट्टारक पद्मनन्दि ई० सन् १४१३ के पूर्ववर्ती हैं। अतएव संक्षेपमें पट्टावलियों और प्रशस्तियों के आधारपर आर्यनका समय ई० वीं शती है। रचनाएँ आचार्य पद्मनन्दिके नामसे कई स्तोत्र मिलते हैं। पर गुरुका नाम निर्दिष्ट न होने से यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि प्राप्त स्तोत्र इन्हीं पद्मनन्दिके हैं या किन्हीं दूसरे आचार्यके । अतएव यहाँ सुनिर्णीत और संदिग्ध दोनों हो प्रकारको रचनाओं का निर्देश किया जाता है १. जीरापल्ली पार्श्वनाथस्तवन २. भावनापद्धति ३. श्रावकाचा रसारोद्धार ४. अनन्तव्रतकथा ५. वर्द्धमानचरित सन्दिग्ध कृतियाँ १. वीतरागस्तोत्र २ शान्तिजिनस्तोत्र ३. रावणपार्श्वनाथस्तोत्र १. जीरापल्लीपार्श्वनाथस्तोत्र में जीरापल्ली स्थित देवालयके मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथकी स्तुति की गयी है। इस स्तोत्र में १० पद्य हैं । कविने रथोद्धता, शालिनो और वसन्ततिलका छन्दों का प्रयोग किया है । कवि आराध्यकी स्तुति करता हुआ कहता है दुस्तरेऽत्र भव-सागरे सतां कर्म - चण्डिम भरान्निमज्जताम् । प्रास्फुरीति न करावलम्बने त्वत्परो जिनवरोऽपि भूतले ॥ १. प्रशस्तिसंग्रह प्रथम भाग, दिल्ली १९५४ प्रस्तावना, पू० १९ ॥ वाचार्य एवं परम्परापोपकाचार्य १२३
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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