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________________ मंगलाचरणके पश्चात् तीन प्रकारके कर्म बतलाये गये हैं तथा द्रव्यकर्मके चार भेद हैं "आत्मनः प्रदेशेषु बद्ध कर्म द्रव्यकर्म भावकम नोकर्म चेति त्रिविधम् !" "तत्र प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशभेदेन द्रव्यकर्म चतुर्विधम् ।" आत्मप्रदेशों में बंधा हुआ कर्म द्रध्यकर्म, भावकम और नोकर्म इस तरह तीन प्रकारका होता है । द्रव्यकर्म प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशके मेदसे चार प्रकारका होता है। अभयचन्द्रने प्रकृतिका स्वरूप ज्ञानप्रच्छदनादि स्वभाव बतलाकर उसने तीन भेद किये हैं—१. मूलप्रकृति, २. उत्तरप्रकृति और ३. उत्तरोत्तरप्रकृति । __"तत्र ज्ञानप्रच्छादनादिस्वभावः प्रकृति । सा मूलप्रकृतिरुत्तरप्रकृतिरुत्तरीत्तरप्रकृतिरिति विधा।" इसके पश्चात् मूलप्रकृतिको ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तरायरूप आठ प्रकारको बतलाकर प्रत्येकका पृथक-पथक स्वरूप निदिष्ट किया है। उत्तरप्रकृतियोंके १४८ भेद बतलाये हैं तथा प्रत्येक प्रकृतिका स्वरूप भी बतलाया है। स्वरूपप्रतिपादन बड़ी सरलता. पूर्वक किया गया है, जिससे साधारण पाठक भी कर्मप्रकृतिके स्वरूपको हृदयंगम कर सकता है। ज्ञानावरणीयकर्मको पाँच उत्तरप्रकृतियोंके स्वरूप निदर्शनको यहाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत किया जाता है-"तत्र पंचभिरिन्द्रियैर्मनसा च मननं ज्ञानं मतिज्ञानं तदावृणोतोति मतिज्ञानावरणीयम् । मतिज्ञानगृहीत्तादिन्यस्यार्थस्य ज्ञानं श्रुतज्ञानं तदावृणोतीति धुतज्ञाभावरणीयम् । वर्णगन्धरसस्पर्शयुक्तसामान्यपुद्गलद्रव्यं तत्संबन्धिसंसारीजोबद्रव्याणि च देशान्तरस्थानि कालान्तरस्थानि च द्रव्यक्षेत्रकालभवभावानवधीकृत्य यत्प्रत्यक्ष जानातोत्यवधिज्ञानं तदावणातीस्थवधिज्ञानावरणीयम् । परेषां मनसि बर्तमानमर्थं यज्जानाति तन्मनःपर्ययज्ञानं तदाबृणोतीति मनःपर्ययज्ञानावरणीयम् । इन्द्रियाणि प्रमाशं मनश्चानपेक्ष्य त्रिकालगोचरलोकसकलपदार्थानां युगपदवभासनं केवलज्ञान तदावृणोतीति केवलज्ञानावरणीमम् ।" __ इस प्रकार इस ग्रन्थमें समस्त १४८ उत्तरप्रकृतियोंका स्वरूपनिर्धारण और भेद बतलाये गये हैं। नोकर्मवर्णन प्रसंगमें संसारी जीव, मुक्त जीव, भव्य, अभव्य आदिका वर्णन किया है। सम्यक्त्ववर्णनके सन्दर्भ में क्षयोपशमलब्धि, विशुद्धिलब्धि, देशनालब्धि, प्रायोग्यतालब्धि और करणलब्धिका वर्णन किया है। १४ गुणस्थानोंके वर्णनके पश्चात् मतावस्थाका चित्रण किया गया है। प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३२१
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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