SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चित्र, तेन, मिश्र इत्यादि करणोंकी व्याख्या एकादश ध्रुवोंके अनन्तर उनका उपयोग करनेकी विधि बतलायी गयी है। प्रत्यक्ष गायन किस प्रकार करना चाहिये, इसके सम्बन्धमें भी महत्त्वपूर्ण सूचनाएं अंकित की गयी हैं। पञ्चम अधिकारमें अनवद्यादि चार प्रकारके वाद्योंके भेद बतलाकर तत्सम्बन्धी परिभाषा भी अंकित को गयी है। पाठवायके १२ मेद बतलाये हैं और किन-किन अक्षरोंको किस-किस वाद्यपर किस प्रकार बजाना चाहिये, यह भी बतलाया गया है। षष्ठ अधिकरणमें नृत्य और अभिनयके सम्बन्धमें प्रकाश डाला गया है। अंग-विक्षेपके विभिन्न प्रकार दिये गये हैं। भरतमुनिने अपने नाट्यशास्त्रमें जिन अभिनयोंका जिक्र किया है, उनका वर्णन भी इस अधिकरण में है। सप्तम अधिकरणमें तालका उद्देश्य, लक्षण और उसके नाम दिये गये हैं। अन्तमें संगीतमें तालका महत्त्व प्रतिपादित करनेवाला निम्न पद्य पाया जाता है-- तालमलानि गेयानि ताले सर्व प्रतिष्ठितम् । तालहीनानि मेयानि मंत्रहीना यथाइति: ।। अष्टम अधिकरण गीताधिकरण है। इसमें गीत गानेकी विधि, गीतके गुणदोष, नतंक, वादक आदिको परिभाषाएँ एवं उत्तम, मध्यम और जघन्य गायकके लक्षण बताये गये हैं। प्रबन्धगीत, तालगीत एवं आलापगीत आदि भेदोंका भी कथन किया है। नवम अधिकरणमें प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट आदिका वर्णन किया गया है। इस संगीतसमयसारमें ११वीं-१२वीं शताब्दीके देशी संगीतका विस्तृत विवेचन किया गया है। अन्धकार मार्गसंगीतके प्रपंचमें नहीं पड़ा है। उसने केवल देशी संगीतका ही अंकन किया है। इसमें सन्देह नहीं कि पाश्चदेवने संगीतको मोक्षशास्त्रके समान ही उपादेय बताया है। रागवर्द्धक होनेपर भी संगीत वीतरागताको ओर ले जाता है। इसका प्रधान कारण यह है कि भगवद्भक्तिके लिये तन्मयता उपादेय है और यह संगीतमें प्राप्त होती है। वीणाको झंकार, वेणुको स्वरमाधुरी, मृदंग, मुरज, पणव, दुदुर, पुष्कर मंजीर, आदि वाद्योंको स्वरलहरी आत्मा और प्राणों में एकोमाव-उत्पन्न करती है और इस एकी. भावसे ध्यानकी सिद्धि होती है। मन, वचन, काय एकनिष्ठ होकर समाधिका अनुभव करते हैं । इस प्रकार पावदेवने अपने इस ग्रन्थमें संगीतको उपादेयता स्वीकार की है और इसे समाधिप्राप्तिका एक कारण माना है। प्रथम अधि३०६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परभरा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy