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करणमें रचयिताने गमकों द्वारा मनकी एकाग्रताका निरूपण किया है। लिखा है
स्वधतिस्थानसंभूतां छायां श्रुत्यन्तराश्रयाम् । स्वरो यद् गमयेद् गोते गमकोऽसी निरूपितः ।।४।। स्फुरितः कम्पितो लीनस्तिरिपुश्चाहतस्तथा ।
आन्दोलितस्त्रभिन्नश्च गमकाः सप्त कीर्तिताः ॥४२|| इस प्रकार धर्मशास्त्रके समान ही संगीतशास्त्रका महत्त्व स्वीकार किया है।
भास्करनन्दि तत्त्वार्थके टीकाकारोंमें भास्करनन्दिका अपना स्थान है । टीकाको अन्तिम प्रशस्तिमें बताया है
'तस्यासीत् सुविशुबदृष्टिविभवः सिद्धान्तपारङ्गतः, शिष्यः श्रीजिनचन्द्रनामकलितश्चारित्रभूषान्वित्तः । शिष्यो भास्करनन्दिनाम विबुधस्तस्याभवत् तत्त्ववित्,
तेनाकारि सुखादिबोधविषया तत्त्वार्थवृत्तिः स्फुटम् ॥४॥ अर्थात् भास्करनन्दिके गुरुका नाम जिनचन्द्र है। ये जिनचन्द्रसिद्धान्तके पारगामी तथा चारित्रसे भूषित थे। ग्रन्यके पुष्पिकावाक्योंमें महासिद्धान्त जिनचन्द्रभट्टारक नाम दिया गया है। प्रशस्तिमें जिनचन्द्रभट्टारकके गुरुका नाम सर्वसाधु लिखा है। बताया गया है कि सर्वसाधुने संन्यासपूर्वक मरण किया है । ___ तत्त्वार्थवृत्तिके अध्ययनसे स्पष्ट है कि भास्करनन्दिके गुरुका नाम जिनचन्द्र और जिनचन्द्रके गरुका नाम सर्वसाधु था। यहाँ यह विचारणीय है कि जिनचन्द्र कौन हैं और इनका समय क्या है ? इतिहासके अवलोकनसे जिनचन्द्र नामके चार-पांच आचार्यों का परिज्ञान प्राप्त होता है। एक जिनचन्द्र चन्द्रनन्दिके शिष्य थे, जिनका उल्लेख कन्नड़ कवि पोनने अपने 'शान्तिपुराण' में किया है | भास्करनन्दिके गुरु जिनचन्द्र सर्वसाधुके शिष्य है अत: पोन द्वारा उल्लिखित जिमचन्द्र भास्करनन्दिके गुरु नहीं हो सकते हैं। दूसरे जिनचन्द्र सिद्धान्तसारके रचयिता हैं। इनकी गुरुपरम्परा ज्ञात नहीं है। अत: इनका सम्बन्ध भी भास्करनन्दिके साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। तृतीय जिनचन्द्र धर्मसंग्रहश्रावकाचारके रचयिता मेघावीके गुरु और पाण्डवपुराणके रचयिता शुभचन्द्राचार्यके शिष्य थे । तिलोयपण्णन्ति'को प्रशस्ति में इनका उल्लेख निम्न प्रकार पाया है
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३०७