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निर्देश किया है ।" शुभचन्द्रने पार्श्वनाथचरित पञ्जिकामें लिखा है- "तस्य पाल्यकीर्तेः महौजसः श्रीपदश्रवणं श्रिया उपलक्षितानि पदानि शाकटायनसूत्राणि तेषां श्रवणं आकर्णनम् ।" अर्थात् शुभचन्द्र पाल्यकीतिको शाकटायनसूत्रोंका रचयिता मानते हैं ।
शाकटायन-प्रक्रियासंहके मंगलाचरण में जिनेश्वरको पाल्यकीर्ति और मुनीन्द्र विशेषण दिये गये हैं, जो लिष्ट हैं । एक अर्थके अनुसार जिनेश्वरको और दूसरे अर्थके अनुसार प्रसिद्ध वैयाकरण पाल्यकीर्तिको नमस्कार किया गया है । अभयचन्द्रके इस मंगलाचरण से शाकटायनसूत्रोंका रचयिता पाल्यकीर्ति सिद्ध होते हैं
मुनीन्द्रमभिवन्द्याहं पाल्यकीर्ति जिनेश्वरम् | मन्दबुद्धयनुरोधेन प्रक्रियासंग्रहं ब्रवे ॥`
शाकटायन या पाल्यकीर्ति यापनीय सम्प्रदायके विद्वान् थे । वि० संवत्की १३वीं शताब्दीके मलयगिरि नामक श्वेताम्बराचार्यने नन्दिसूत्रकी टीकामें उन्हें यापनीय-यतियोंका अग्रणी लिखा है
" शाकटायनोऽपि यापनीययत्तिग्रामाग्रणीः स्वोपज्ञशब्दानुशासनबृत्तावादी भगवतः स्तुतिमेवमाह् - 'श्रीवीरममृतं ज्योतिर्नत्वादि सर्ववेधसाम् । अत्र च न्यासकृतव्याख्या--सर्ववेधसां सर्वज्ञानां सकलशास्त्रानुगतपरिज्ञानानां आदि प्रभवं प्रथममुत्पत्तिकारणमिति ।
पात्यकीर्ति या शाकटायन श्वेताम्बरोके समान स्त्रीमुक्ति और केवली कवलाहारको भी मानते हैं । यह मान्यता यापनीयसंघकी है ।
अमोघवृत्तिमें " उपसर्वगुप्तं व्याख्यातारः" कहकर शाकटायनने सर्वगुप्त आचार्यको सबसे बड़ा व्याख्याता माना है और ये सर्वगुप्त वही जान पड़ते हैं, जिनके चरणोंके समीप बैठकर भगवती आराधनाके कर्ता शिवार्यने सूत्र और अर्थको अच्छी तरह समझा था। शिवार्य यापनीय सम्प्रदायके आचार्य थे । अतएव उनके गुरुको श्रेष्ठ व्याख्याता बतलाने वाले शाकटायन भी यापनीय होंगे 1 श्री प्रेमीजीने किसी आधारसे शाकटायनको 'श्रुतकेवलिदेशीयाचार्य' लिखा है। चिन्तामणिटीका के कर्त्ता यक्षवर्माने उन्हें " सकलज्ञानसाम्राज्यपदमाप्तवान् " माना है । दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार वीर निर्वाण सं० ६८३ वर्षके पश्चात्
१. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० १५०
२. प्रक्रियासंग्रहका मंगलाचरण । ३. नन्दिसूत्र, पृ० २३ १
१८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा