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पाणिनिने अपनी अष्टाध्यायी में किया है। ऋग्वेद और शुक्लयजुर्वेद के प्रातिशाख्यों में तथा यास्काचार्य के निरुक्तमें भी इनका निर्देश आया है। ये शाकटायन पाणिनी से साढ़े छः सौ वर्ष पूर्व हुए है, पर प्रस्तुत शाकटायन उक्त शाकटायनाचासे भिन्न हैं। ये जैन आचार्य हैं और इन्होंने स्वोपज्ञ अमोधवृत्ति सहित शाकटायन जब्दानुशासनको रचना की है। अमोघवृत्तिके आरम्भ में शाकटायन नामसे ही इनका निर्देश किया गया है। मंगलाचरणकी व्याख्या करते हुए ग्रन्थप्रणयनके प्रतिज्ञावाक्यमें बताया है
"एवं कृतमङ्गलरक्षाविधानः परिपूर्णमलाग्रंथ लघुपायं शब्दानुशासनं शास्त्रमिदं महाश्रमण संघाधिपतिर्भगवानाचार्यः शाकटायनः प्रारभते शब्दार्थज्ञानपूर्वकं च सन्मार्गानुष्ठानम्" ।
इससे स्पष्ट है कि इस ग्रन्थके रचयिता आचार्य शाकटायन हैं । शाकटायनकी चिन्तामणिटीका के रचयिता यक्षत्रर्माने भी शाकटायनको इस शब्दानुशासनका रचयिता माना है । उन्होंने लिखा है
"स्वस्ति श्रीसकलज्ञान साम्राज्यपदमाप्तवान् । महाश्रमणसंधाधिपतिर्यः शाकटायनः ||
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“विघ्नप्रशमनार्थं मद्देवतानमस्कारं परममङ्गलमारभ्य भगवानाचार्यः शाकटायनः शब्दानुत्रारानं शास्त्रमिदं प्रारभते ।"
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शाकटायनका अन्य नाम पाल्यकीति भी मिलता है । वादिराजसूरिने अपने पार्श्वनाथचरित में इनका स्मरण पाल्यकीर्तिके नामसे किया है-
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कुतस्त्या तस्य सा शक्ति: पाल्यकीर्तेर्महौजसः 1 श्रीपदश्रवणं यस्य शाब्दिकान् कुरुते जनान् ||
अर्थात उस महातेजस्वी पाल्यकीर्तिकी शक्तिका क्या वर्णन किया जाय, जिसका श्रीपद श्रवण ही लोगोंको शाब्दिक या वैयाकरण कर देता है । श्री नाथूरामजी प्रेमीका अभिमत है कि "श्रीवीरममृतं ज्योतिः " आदिपदसे शाकटायनका प्रारम्भ होता है। इसी कारण वादिराजसूरिने श्रीपदको लक्ष्य करके उक्त
१ शाकटायन-व्याकरण, भारतीय ज्ञानपीठ, प्रथम संस्करण, सन् १९७१ पृष्ठ १ । २. जैन साहित्य और इतिहास लेखक - नाथूराम प्रेमी, प्रकाशक – हेमचन्द्र मोदी, ठि० हिन्दी - ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, हीराबाग गिरगांव, बम्बई, प्रथम संस्करण सन् १९४२, पृ० १५६, १५७ ।
३. श्री पार्श्वनाथ चरित, माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, ११२५ ।
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प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोक्काचार्य : १७