SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मैं इन मुन्दरियोंको हँसा सकता हूँ। उसने वहाँ जाकर अपने वृत्तान्त द्वारा उन युबतियोंको अनुरञ्जित कर हँसाया । जिनदत्तने एक मदोन्मत्त गजको भी वश कर राजाको प्रसत्र किया और उसकी कन्याके साथ विवाह सम्पन्न किया, पश्चात् जिनदत्त अपने माता-पितामे मिला और मनि हाग अपनी भवाबलि अवगत कर उसने मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली । कठोर तपश्चरण कर उसने आठवां स्वर्ग प्राप्त किया। कविने इम काव्यमें सून्दर कवित्वका भी नियोजन किया है। नदी और वेश्याओंकी समना करते हुए श्लेष और उत्प्रेक्षा द्वारा एक माथ चमत्कार निबद्ध किया है मविभ्रमा: मपद्माश्च मसेव्यपयोधराः । कुटिला यत्र गजन्ते नद्यः पम्याङ्गना इव ।' कवि बसन्तपुरको खातिकाओंके सौन्दर्यका उत्प्रेक्षा द्वारा प्रतिपादन करता हुआ कहता है कि खातिकाके व्याजसे ममुद्र ही यहाँ प्रविष्ट हो गया है। कविने समुद्र के समस्त गुणोंका प्रतिपादन करते हुए लिखा है महीप्रवेशमाविश्य चौरेणेव पयोधिना । खातिकाज्याजतो वा यत्नहरणेच्छया ।। फनि पाल्पना कितनानी है, मह निम्नबित पासे सहज जाना। जा सकेगा। रात्रि समाप्त हो गयी है, सूर्यका उदय होने जा रहा है। यह सूर्य पूर्व दिशाके कमकुम भषणके समान, रात्रिरूपी अङ्गनाकं विस्मृत लोहित कमलके ममान, कामदेवनृपतिक रक्त आतप पत्रके ममान, अन्धकारनाशक चक्रके समान और आकाशरूपी स्त्रीके माङ्गल्यकलशक समान परिलक्षित हो रहा है-- प्राची कुंकुममण्डनं किमथवा रात्र्यगनाविस्मृतं । रक्ताम्भोजमश्रो मनोजनृपते रक्तातपत्रं किमु । चक्र ध्वान्त विभेदक द्य वनितामांगल्यकुम्भः किमु । इत्थं शंकितमबरे स्फुटमभूदानोस्तदा मण्डलम् ।।' ग्भ-परिपाक और भाव-योजनाको दृष्टिसे भी यह काध्य मफल है । शाकटायन पाल्यकीर्ति ये वैयाकरण शाकटायन बहुत प्राचीन आचार्य हैं, जिनके मतका उल्लेख १. जिनदत्तचरित्र, माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, विक्रमाश्च १९७३. पद्म १८ । २. वहीं, पद्य १५१७। ३. जिनदत्तचरित्र. माणिकश्चन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, पच २११२७ । १६ : तीर्थकर महाबीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy