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________________ कोति प्राप्त भी की। इन्हें भाग्यवादी भी माना जा सकता है। इसका कारण यह है कि पहले राज्य द्वारा तिरस्कृत हुए, पश्चात् इन्हें सम्मान प्राप्त हुआ। सभी नाटकोंमें भाग्य और पूर्वजन्ममें किये गये कर्मोको मान्यता प्रकट करनेवाले अनेक स्थल आये 1 इनके नाटकोंके अध्ययनसे अवगत होता है कि आचार्यहस्तिमल्ट, बहभाषाविद्, कामशास्त्रज्ञ, सिद्धान्ततर्क विज्ञ एवं विविध शास्त्रोके ज्ञाता थे। संगीतगास्त्रको अनेक महत्त्वपूर्ण वातें विक्रान्तकोग्व और मैथिलीकल्याण में आती हैं। गुरुपरम्परा विक्रान्सकौरवमें जो वंशपरम्परा दी है, उससे इनके समय एवं गुर्वावलोपर प्रकाश पड़ता है । वंशपरम्परा निम्न प्रकार है समन्तभद्र शिवकोटि शिवायन वीरसेन जिनसेन गुणभद्र अन्यशिष्य गोविन्दभट्ट (पुत्र) हस्तिमल्ल नेमिचन्ददेवने प्रतिष्ठातिलकमें जो वंशपरम्परा दी है वह निम्न प्रकार है चीरसेन जिनसेन वादीसिंह वादिराज हस्तिमल्ल प्रबुद्धाचार्य एवं परमरापौषकाचार्य : २७७
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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