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जीव हिंसा और परिग्रहका त्याग कर पञ्चत्व प्राप्त किया। स्वर्ग गया और वहाँ देवियोंके साथ विचरण करने लगा 1 पार्चकुमारने सर्पको पञ्चनमस्कार मन्त्र दिया जिसके प्रभावले पातालमें. नागराजोंके बीच तीन पल्यकी आयवाला धरणेन्द्रदेव हुआ। सर्पकी मत्युको देखकर कुमारके मनमें विरक्ति हुई और वह संसारके भोगोंको असार समझने लगा। लौकान्तिक देवोंने आकर कुमारके वैराग्यकी वृद्धि की और कुमारने जिनदीक्षा ग्रहण की। कुमारके दीक्षित होनेसे रविकीति और प्रभावतीको विशेष कष्ट हुआ | जब हपसेनाने कुमारकी दीशाका समाचार सूना, तो हतप्रभ हो गया। मन्त्रियोंने उसे बहुत समझाया। माता वामादेवीको भी पुत्रके दीक्षा समाचारसे कष्ट हुआ! मन्द्रियोंने किसी प्रकार हयसेन और वामादेवीको समझाकर सन्तुष्ट किया।
चौदहवीं संधिमें ३० कड़वक है। आरम्भमें पार्श्वनाधके तप और संयमका चित्रण किया है। आकाशमार्गसे जाते हए असुरेन्द्र के विमानका स्थगन होना और स्थगनका कारण पार्श्वकूमारको जानकर असुरेन्द्र द्वारा पार्श्वनाथको मार डालनेका निश्चय करना एवं नाना प्रकारके उपसर्ग देना, और उपसर्गोके शमनके लिया धरणन्द्रका आना, नागराज द्वारा पावकी सेवा करना उधा असुरकुमारको उपर्गन करने के लिए चेतावनी देना आदिका वर्णन आया है। पार्श्वनायकी केवलज्ञानकी उत्पत्ति भी इसी सन्धिमें वर्णित है ।
पन्द्रहवीं सन्धिमें १२ कड़वक हैं ! केवलज्ञानको प्रशंसाको गयी है । देवों द्वारा केवलज्ञानकल्याणक सम्पन्न करनेवाले उत्सवका वर्णन आया है। इन्द्र द्वारा छोड़े गये वज्रसे असुरकुमारका पार्श्वनाथके शरण में जाना, इन्द्र द्वारा समबशरणकी रचना, देवों द्वारा जिनेन्द्रको स्तुति, इन्द्रकी उपदेश देने हेतु प्रार्थना आदि विषय इसी सन्धिमें आये हैं।
सोलहवीं सन्धिमें १८ कड़वक हैं । आरम्भमें गणधर द्वारा लोकोत्पतिपर प्रकाश डालने के लिए आग्रह किया गया है और समवशरण में आवारा, लोकाकाश, मेरु, अधोलोक, उर्व लोक, स्वर्ग आदिके वर्णनके पश्चात् वैमानिक ज्योतिषी, व्यन्तर और भवनवासियोंकी आयुका वर्णन आया है । मध्यलोक और उसमें स्थित जम्बूद्वीप, सप्त क्षेत्र, षट् कुलाचल पूर्व-अपर विदेह, गंगादि नदियाँ लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि, पुष्करार्धद्वीप, ढाईद्वीपले क्षेत्र, पर्वतादिद्वीपसमुद्रोमें सूर्य-चन्द्रकी संख्या, तीनों वातपलयोंका स्वरूप एवं कमठासुर द्वारा जिनेन्द्रसे क्षमायाचनाका वर्णन आया है।
सत्रहवीं सन्धिमें २४ कड़वक हैं। इस सन्धिमें कुशस्थलीमें जिनेन्द्रके समयशरणका पहुँचना, रविकीर्तिका जिनेन्द्रके पास आगमन, शलाकापुरुषोंके सम्बन्ध२१६ : तीर्थकर महावीर और उनको आपार्यपरम्परा