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________________ स्वागत किया। इसके पश्चात् ग्यारहवीं सन्धिके १३ कड़वकोंमें युद्धका वर्णन आया है। बताया है कि कुमारका आगमन सुनकर यवनराज सशंकित हुआ । पारर्धक आ जानेसे रविकीतिकी सेनाका बल बढ़ा और गवनराजकी सेनाके साथ भयंकर पद्ध होने लगा। रविकीर्तिने अपूर्व रणकौशल दिखलाया । यवनराजके बहुतसे सामन्त और वीर रविकीर्ति द्वारो परास्त किये गये। बारहवीं सन्धिमें १५ कड़वक हैं। आरम्भमें यवनराजके गजबलका रविकीर्तिपर आक्रमण करनेका चित्रण आया है। विकीर्तिने अत्यन्त कौशलपूर्वक गजसेनाका विनाश किया, पर विशाल गजवाहिनी के समक्ष उनकी गषित कुण्ठित होने लगी। रविकीतिके मन्त्रियोंने इस रणदशाको देखकर कमार पावसे निवेदन किया कि आप अब युद्ध करनेके लिा तैयार हो जाइये । आपकी शक्तिके समक्ष त्रलोक्यकी शक्ति नतमस्तक है । कुमार पार्श्व एक अक्षौहिणी अश्व, गज, रथ और पैदल सैनिकों महित रणभूमिमें प्रविष्ट हुए । पाश्चने शत्रुके मजममूहको क्षणभरमें तितर-बितर कर दिया। कमार पात्रके माथ युद्ध करनेके लिए यवनराज अनेक प्रकारको तैयारियां करने लगा और उसने दिव्य अस्त्रोंका प्रयोग किया। यवनराजने विभिन्न अस्त्रोंका प्रयोग किया, पर उसका एक भी वाण सार्थक न हुआ । कुमार पावने यवनराहको बन्दी बना लिग ! तेरहवीं सन्धिमें २० कड़वक हैं। आरम्भमें यवनराजके भटो द्वारा आत्मसमर्पणका वृतान्त आया है। युद्धसमाप्तिके अनन्तर कुमार पायने कुशस्थलीमें प्रवेश किया। रविकीतिने विभिन्न प्रकारसे कुमारका स्वागत और आतिथ्य किया। यवनराजके मन्त्रीने आकर सन्धिका प्रस्ताव उपस्थित किया। कुमार पाश्चने यवनराजको मुक्त कर दिया और सन्धिका प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया गया। रविकीर्तिने अपने मन्त्रियोंसे परामर्श कर अपनी कन्याका विवाह कुमार पावसे करनेकी इच्छा व्यक्त की। विवाहके लिए रवि, चन्द्रसे शुद्ध लान निश्चित की गयी। इसी समय कुमार पावको सूचना मिली कि नगरके बाहर कुछ तपस्वी आये हुए हैं। कुमार पार्श्व उन तपस्वियोंको उद्बोधन करनेके लिए चल पडे । वहाँ जाकर देखा कि जिन लकड़ियोंको जलाकर पञ्चाग्नितप किया जा रहा है, उनमें एक लकड़ीके बीच सपं है। कुमारने रोकते हए कहाइस लकड़ीको मत जलाओ, इसमें साँप है । तपस्वियोंके बीच रहनेवाला कमठ का जीव तापसी रुष्ट हुआ और क्रोधपूर्वक बोला-इस लकड़ीमें सर्प कहाँ है ? यह राजा खल है । मैं अभी इस लकड़ीको फाड़कर देखता हूँ। लकड़ीको फाड़ा गया, तो उसमेंसे एक विषधर भुजंग निकला। सभी देखकर आश्चर्यचकित रह गये। कमठके जीवको तो अत्यधिक पश्चात्ताप हुआ। उसने अनशन कर प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २१५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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