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________________ कमठका जीव विभिन्न योनियोंमें जन्य-मरण करता हुआ आहाण कुलमें उत्पन्न हुआ। उसने रशिष्ट नामक नपस्टीके माश नासदीक्षा राम की और वह पञ्चाग्नितप करने लगा। __ आठवी सन्धिमें २३ कड़बक हैं । इस सन्धिमें वाराणमीके राजा हयसन और उनकी पत्नी बामादेवीका वर्णन आया है। तीर्थंकर पार्श्वनाथके गर्भम आनेके छ: महीने पहिलेसे ही देवों द्वारा रत्नोंकी वर्षा हुई और बामादेवीकी सेवाके लिए देवांगनोंका आगमन हुआ । वामादेवीने रात्रिके चतुर्थ प्रहरमें १६ स्वप्न देखे और इन स्वप्नोंका फल राजा हयसेनसे पूछा। हयसेनमे स्वप्नोंके फलपर प्रकाश डालते हुए बतलाया कि तुम्हें संसारोद्धारक पुत्र उत्पन्न होगा। इस पुत्रका महत्त्व सर्वत्र व्याप्त हो जायगा। अनन्तर तीर्थंकर पार्श्वनाथका गर्भावतरण, जन्माभिषेक, कर्णछेदन, नामकरणका वर्णन आया है। इन्द्र तीर्थंकर पार्वको वामादेवीके पास छोड़कर स्वर्ग चला गया । नौवीं सन्धिमें १४ कड़वक है और जयसेनको भवनमें किये गये जन्मोत्सवका चित्रण है । पुत्र-उत्पत्तिसे हयसेनको समृद्धि अधिक बढ़ी | शनैः-शनः पार्श्वनाथ बाल्यावस्था पार कर ३१वें वर्ष में प्रविष्ट हाए । हयसेनकी राजसभामं भूटान, मौय, इक्ष्वाकु, कच्छ, सिन्धु आदि विभिन्न देशोंके गजा उपस्थित हुए। एक दिन राजसभामें दूत आया और उसने कुरास्थलो राजा द्वारा दीक्षा ग्रहण किये जानेका वर्णन किया । हृयसेभ इस समाचारसे दुःखित हुआ। इसी बीच दूत्तने कुशस्थलपर यवन राजा द्वारा आक्रमण और धमकी दिये जानेकी बात बतलायी। हयसेनने प्रतिज्ञा की कि यवनका गर्व खवं कर दूंगा। उसने युद्धके लिए प्रस्थान किया । दसवीं सन्धिमें १४ कड़वक हैं। इस सन्धिके आरम्भमें बताया गया है कि पार्श्वनाथ यवन सेनाका सामना करनेके लिए चल पड़े । हयसेनने पार्श्वनाथको बहुत समझाया कि अभी तुम बालक हो, युद्ध में प्रौढ़ व्यक्तियोंको ही जाना चाहिये । अत: तुम यहीं निवास करो और मैं युद्धके लिए जाऊँगा। पाश्र्वनाथने निवेदन किया कि शिशु तथा बालकका लालन-पालन करना पिताका कत्र्तव्य है। इसके विपरीत वृद्धावस्थामें पिताकी सेवा-सुश्रुषा करना पुत्रका धर्म है। अत: कुमारने युद्ध में जानेके लिए अत्यधिक आग्रह किया, जिसे पिताको स्वीकार करना पड़ा । चतुरंगिणीसे युक्त कुमार पार्श्वनाथने युद्ध के लिए प्रस्थान किया । मार्गमें नानाप्रकारके शकुन हुए। सरोवरके समीप सेनाका शिधिर पड़ा। इस सन्दर्भ में आचार्य ने सूर्यास्त, सन्ध्या, रात्रि, चन्द्रोदय, सूर्योदय, सैन्यप्रस्थान आदिका सुन्दर चित्रण किया है। कुशस्थलके राजा रविकीतिने कुमार पावका २१४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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