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के कपोलोंका सेवन करते थे । यहाँ विविध प्रकारके समस्त विद्वान अपने-अपने देशोंका त्याग कर, यहाँ आकर रहते हैं। देव भी स्वर्गसे च्युत हो यहाँ निवास करनेकी कामना करते हैं। इसी देशमें पोदनपुर नामका नगर है, जो प्राकाट, शालाओं, मठों, जिनमन्दिों, प्रणालियों बड़कों,
मोदी -ॉबी डालिकाओं, आरामों, उपवनों, नदियों, कूपों, वापियों, वृक्षों, चौराहों एवं विभिन्न प्रकारके बाजारसे सुशोभित है । इस नगरमें चौशाला, ऊँचा, विशाल तथा विचित्र ग्रहोंसे युक्त राजभवन था । यह महीतलपर उसी प्रकार सुशोभित था जिस प्रकार नभत्तलमें नक्षत्रोंसहित चन्द्रमा । राजभवनके वर्णनके पश्चात महाराज अरविन्द और उनकी पत्नी प्रभावतीके रूप, सौन्दर्य और गुणोंका वर्णन किया है। अनन्तर राजाके पुरोहित विश्वभूतिके गुणोंका निरूपण किया गया है। इस पुरोहितकी पत्नीका नाम अनुद्धरी था, जो अपने रूपलावण्यसे विश्वभूतिको आकृष्ट करती थी। इस दम्पत्तिके दो पुत्र हुए कमठ और मरुभति । कमठकी पत्नी मदमत्त महागजकी करिणीकी शोभा धारण करनेवाली शुद्ध हृदय तथा शीलवती थी। उसका नाम वरुणा था। मरुभूतिकी पत्नी परलोक मार्गके विपरीत आचरण करने वाली तथा कुशील थी। उसका नाम वसुन्धरी था । एक दिन विश्वभतिको संसारसे बिरक्ति हई और उसने घर-बार छोड़कर अपना पद अपने पुत्रको सौंपकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली। अनुद्धरीने भी पतिका अनुकरण किया और वह भी प्रवजित हो गयी । राजाने कमठ और मरुभूतिको बुलाकर उन दोनों से मरुभूतिको पुरोहितके पदपर प्रतिष्ठित किया। एक दिन राजा अरविन्दको किसी शत्रुको वश करनेके लिए दूर देश जाना पड़ा, साथमें मरुभूति भी गया । किन्तु वह अपना समस्त परिवार वहींपर छोड़ गया। इसी समय वह दुष्ट, विनष्ट चित्त तथा महामदोन्मत्त कमठ घरमें रहती हुई अपनी भ्रातृवधूको देखकर उसपर अनुरक्त हो गया । कमठने अपने छोटे भाईकी पत्नीके साथ अनुचित व्यवहार किया । जब मरुभूति शत्रु पराजयके अनन्तर वापस घर आया, तो उसे क्मठकी इस अनीतिका पता लगा । पर उदार मरुभूतिने कमठको क्षमा कर दिया । पर राजाको कमठकी यह अनीति पसन्द न आयी और उसने उसे नगरसे निर्वासित कर दिया। कमठ एक तपोवनमें प्रविष्ट हुआ और तापसियोंके आश्रममें जाकर रहने लगा। मरुभूति राजाके द्वारा समझाये जानेपर भी अपने भाईकी तलाश करनेके लिए निकल पड़ा। वह तापसियोंके आश्रममें पहुंचा और वहाँ मरुभूतिको पञ्चाग्नि तप करते हुए देखकर प्रभावित हुआ। उसने भावपूर्वक उसकी तीन प्रदक्षिणाएँ की और प्रणाम करनेके लिए उसके चरणों में सिर झुकाया। कहने लगा "हे महाबल !
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २११