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________________ ! विधि आदि ज्योतिष विषयक ग्रन्थोंके रचयिता और श्रीवर पण्डित जयकुमारचरित के रचयिता है। स्थितिकाल 'कर्णाटकविचरित' के उद्धरणसं ज्ञात होता है कि श्रीधराचार्य के 'जातकतिलक' का रचनाकाल ईस्वी सन् २०४९ है । महावीराचार्य के गणितसारमें---- धनं वनर्णयोगां मूल स्वर्ण तयोः क्रमात् । ऋणं स्वरूपतोऽज्वगं यतस्तस्मान्न तत्पदम् ॥ धनात्मक एवं ऋणात्मक राशियोंका वर्ग धनात्मक होता है और उस वर्ग - राशिके वर्गमूल क्रमशः धनात्मक और ऋणात्मक होते हैं । यतः वस्तुओंके स्वभाव (प्रकृति) में ऋणात्मक राशि, वर्गराशि नहीं होती, इसलिये उसका कोई वर्गमूल नहीं होता । उपर्युक्त गणितसारसंग्रहका सूत्र श्रीधराचार्यका सूत्र है | अतः स्पष्ट है कि श्रीधराचार्य महावीराचार्य के पूर्ववर्ती हैं। महावीराचार्य ने अपने गणितसारसंग्रहमें अमोघवर्षका निम्न प्रकार स्मरण किया है प्रीणितः प्राणिसस्यौघो निरीतिर्निरवग्रहः । श्रीमतामोघवर्षेण येन स्वष्टहितैषिणा || X X X विध्वस्तैकान्तपक्षस्य स्याद्वादन्यायवादिनः । देवस्य नृपतुङ्गस्य बर्धतां तस्य शासनम्' || इन पद्योंसे स्पष्ट है कि अमोघवर्ष के शासनकाल में गणितसारसंग्रहकी रचना हुई है । राष्ट्रकूटशी इस राजाका समय ईस्वी सन् ८१५-८६५ है । अतएव गणितसारसंग्रहकी रचना नवीं शताब्दीमें हुई है। इस प्रकार श्रीधराचार्यका समय ईस्वी सन् ८० के पहले आता है । श्रीधराचार्यका उल्लेख भास्कराचार्य, केशव, दिवाकर, देवज्ञ आदिने आदरपूर्वक किया है। १. गणितसारसंग्रह, सोलापूर संस्करण, १५२ ॥ २. वही, १ ३ । ५. ३. वही, ११८ ४. यत् पुनः श्रीचराचार्य ब्रह्मगुप्त्या दिभिर्व्यासवर्गाद्दशगुणात्पदं परिधिः स्थूलोऽङ्गीकृतः स सुखार्यम् । न हि तं जानन्तीति — सिद्धान्तशिरोमणि गोलाध्याय, भुवनकोश, श्लो ० ५२ की टीका । श्रेष्ठं रिष्टहृतो दशाक्तम् इहोजः श्रीधरादयोदितम् । कष्टेष्टघनबलान्तरात् क्व च कृतं तद्युक्तिशून्यं त्वसत् । - केशवीय पद्धति ०३२ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : १८९
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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