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नाना प्रकारको औषधियोंको विभिन्न नक्षत्रोंमें विभिन्न योगों द्वारा तैयार करनेसे अनेक प्रकारकी सिद्धियोंका वर्णन आया है । दशम अधिकार गारुड अधिकार है । गारुड - विद्याके आठ अंग हैं- १. संग्रह, २. अंगन्यास, ३. रक्षा, ४. स्तोभ, ५. स्तम्भन, ६. विषनाशन, ७. सचोद्य और ८ खटिकाफणिदशन । इन आठों अंगों का विस्तारसे वर्णन आया है । इस ग्रन्थकी मन्त्र-तन्त्रविधि में कुछ ऐसे अखाद्य पदार्थों के प्रयोग भी बतलाये हैं, जिनका मेल जैनधर्मके आचारशास्त्र के साथ नहीं बैठता है, पर लौकिक विषय होनेके कारण इसे उचित माना जा सकता है ।
४. सरस्वतीमन्त्रकल्प
इसका दूसरा नाम भारतीकल्प भी है। आरम्भमें कविने लिखा हैजगदीश जिनं देवमभिवन्द्याभिशंकरम् | वक्ष्ये सरस्वतीकल्प समासेनाल्पमेधसाम् || १॥ अभयज्ञानमुद्राक्षमालापुस्तकधारिणी । त्रिनेत्रा पातु मां वाणी जटाबालेन्दुमण्डिता ॥२॥ लब्धवाणोप्रसादेन मल्लिषेणन सूरिणा । रच्यते भारतीकल्पः स्वल्पजाप्यफलब्रदः ||३||
स्पष्ट है कि कविने अभयज्ञानमुद्रावाली अक्षमालाधारिणी और पुस्तकग्राहिणी, जटारूपी बालचन्द्रमासे मण्डित एवं त्रिनेत्रा सरस्वतीकी कल्पना की है । इस सरस्वतीके प्रसादसे व्यक्ति अपने मनोरथोंको पूर्ण करता है । यह सरस्वती अल्प जाप करनेसे ही सन्तुष्ट हो जाती हैं। इसमें ७५ पद्य हैं और साथ में कुछ गद्य भी है। यह भी पद्मावतीकल्पके साथ प्रकाशित है।
५.
ज्वालिनी कल्प
यह मन्यग्रन्थ है । इसकी प्रति सेठ माणिकचन्द्रजी, बम्बईके संग्रहमें है । इसमें १४ पत्र हैं और पाण्डुलिपि वि० सं० १५६२ की लिखी हुई है । यह ज्वालमालिनीकल्पसे भिन्न है ।
६. कामचाण्डाली कल्प
यह भी मन्त्रसम्बन्धी ग्रन्थ है । इसके आरम्भ में लिखा है
छन्दोलंकारशास्त्र किमपि न च परं प्राकृतं संस्कृतं वा । काव्यं तच्च प्रबन्धं सुकविजनमनोरंजनं यः करोति || कुर्वन्तुर्वीशिलादौ न लिखितं किल तद्याति यावत्समाप्ति । स श्रीमान्मलिषेण जयतु कविपतिर्वाग्वधूमण्डितास्यः ।।
१७६: तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा