SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गम्भीर, मौनी और महाभिमानी हो । गुरुजनोंसे उपदेश पाया हुआ तन्द्रारहित, निद्राको जीतनेवाला और कम भोजन करनेवाला ही मन्त्रसाधक हो सकता है। साधकके अन्य लक्षणोंको बतलाते हुए लिखा है निजितविषयकषायो धर्मामतजनितहर्षगतकायः । गुरुवरगुणसम्पूर्णः स भवेदाराधको देव्याः ।। शुचिः प्रसन्नो गुरुदेवभक्तो दृढव्रतः सत्य-दयासमेतः । दक्षः पटुर्बीजपदावधारी मंत्री भवेदीदृश एवं लोके ॥ जिसने विषय और कषायोंको जीत लिया हो, जिसके शरीरमें धर्मरूप अमृतसे उत्पन्न हर्ष भरा हो तथा जो सुन्दर सुन्दर गुणोंसे परिपूर्ण हो वह देवीका आराधक होता है । जो पवित्र, प्रसन्न, गुरु और देवहा नत, उद माताला दयाल, सत्यभाषी, बुद्धिमान, चतुर और वीजाक्षरोंका निश्चय करनेवाला हो, ऐसा व्यक्ति ही लोकमें मन्त्री हो सकता है। सकलीकरणकी क्रिया में अंगशद्धिकी मान्त्रिक विधि दी गयी है और मन्त्रोंमें शत्रुता एवं मित्रताका निश्चय किया गया है। तृतीय परिच्छेदमें मन्त्रोंके साधनकी सामान्यविधि वर्णित है। दिशा, काल, मुद्रा, आसन एवं पल्लवोंके भेदोंका वर्णन भी आया है। वशीकरण, आकर्षण, उच्चाटन आदि मन्त्रोंको किस आसन और दिशामें सिद्ध करना चाहिए, इसका भी वर्णन आया है।। ___ आह्वानन, स्थापन, सन्निधिकरण, पूजन और विसर्जनको पंचोपचार कहा गया है । पद्मावतीके एकाक्षर, षडक्षर, त्र्यक्षर आदि मन्त्र भी दिये गये हैं। ____ चतुर्थ परिच्छेदमें विभिन्न मन्त्र, यन्त्र और बीजाक्षरोंका कथन किया गया है। पञ्चम परिच्छेदमें स्तम्भन मन्त्रोंका कथन आया है और जल, तुला, सर्प तथा पक्षी स्तम्भनके मन्त्रों और यन्त्रोंका निर्देश किया गया है । षष्ठ परिच्छेदमें इष्टांगनाकर्षणयन्त्रविधि दी गयी है और चार यन्त्रोंका निर्देश आया है । इस प्रकरणमें कई मन्त्र भी हैं। सप्तम परिच्छेदमें ज्वर आदि रोगोंके उपशमन हेतु अनेक यन्त्र दिये गये हैं। इन यन्त्रोंको धारण करनेसे अनेक प्रकारको सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। अष्टम परिच्छेद निमित्ताधिकार है। इसमें अनेक प्रकारके मन्त्र और यन्त्र आये हैं। नवम परिच्छेद तन्त्राधिकार है। इसमें लवंग, केशर, चंदन, नागकेशर, श्वेतसर्षप, इलायची, मनसिल, कूट, तगर, श्वेत कमल, गोरोचन, लाल चन्दन, तुलसी, पाख ओर कुटज आदि द्रव्योंको पुष्य नक्षत्रमें लाकर कुमारी कन्यासे पिसवाकर धतूरेके रसमें गोली बनाकर चन्द्रोदय होनेपर तिलक करनेसे संसार मोहित होता है। इस प्रकार १. भैरवपद्मावतीकल्प, पद्य ९-१० । प्रमुखाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : १७५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy