SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर रहा, पर बड़ा भाई नागकुमारसे भेंट करने कनकपुर आया | नागकुमारको देखते ही उसकी आँखें ठीक हो गयीं, तब वह कमारका रक्षक हो गया ! जब श्रीधरके आदमी नागकुमारको मारने आये, तो उसने उसे बचा लिया। वे दोनों मथुरा चले गये। कुमारने मथुरामें एक वेश्याका आतिथ्य स्वीकार किया । उसके कहने पर शीलवतीको राजाकी कैदसे मुक्त किया। महाच्यालने भी इस मन्त्री राजासे अपना राज्य वापस ले लिया । वहाँसे कुमार कश्मीर गया । व्याल उसके साथ था। उसने कश्मीरनरेश नन्दकी पुत्री नन्दवतीको वीणा पराजित किया। नन्दवती इसपर मोहित हो गयी। दोनोंका विवाह हो गया। कुछ दिन रहकर उन्होंने हिमालयके भीतरी भागोंका भ्रमण किया। वहाँ जिनमंदिर और गुहामन्दिरोंके दर्शन किये। भीलराजकी पलीका गुहराज भामासुरसे उद्धार किया। ___आगे बढ़नेपर कंचनगुहामें उसे सुदर्शना देवी मिलीं। उसने बहुत-सी विद्याएँ कुमारको दी। पहले ये विद्याएं जिनशत्रुने सिद्ध की थीं, पर वह बादमें विरक्त हो गया। देवी योग्य अधिकारीको ये विद्याएं देकर प्रसन्न हुई। नागकुमार कई महत्त्वपूर्ण कार्य कर वहाँसे वापस लौटा। __ अपने समस्त साथियोंके साथ चलता हुवा वह विषवनमें आया। यहां उसने भूलसे विषले आम खा लिये, पर इन आमोंका कुप्रभाव उसपर न पड़ा। इसपर दुर्मुख भीलने ५०० योद्धाओंके साथ उसकी अधीनता स्वीकार की। इसके पश्चात् कुमारने राजा अरिवर्माकी सहायता की । विजयके उपलक्ष्यमें उसने नागकुमारके साथ अपनी कन्या जयावतीका विवाह कर दिया। इतनेमें कुमारको एक लेखपत्र प्राप्त हुआ, जिसमें एक विद्याधरसे सात कन्याओंके उद्धारकी अभ्यर्थना की गयी थी। उसने विमानसे जाकर उन कन्याओंका उद्धार किया । पश्चात् कुमारसे उनका विवाह हो गया। एक बार महाव्याल मदुरा पहुंचा। वहाँ वह बाजारमें भ्रमण कर रहा था कि राजकुमारी मलयसुन्दरी उसे देखकर मोहित हो गयी, पर वह झूठमूठ चिल्लाकर कहने लगी-"इसने मुझे रोक लिया है।" अनुचर सहायताके लिए आये, पर महाव्यालने उन्हें हरा दिया। मलयसुन्दरीका विवाह महाव्यालके साथ सम्पन्न हो गया । नागकुमारने उज्जयिनीकी कुमारी मेनकासे विवाह किया। बहाँसे महाव्यालके साथ दक्षिण भारतकी यात्रा करने गया। उसने तिलकसुन्दरीको मृदंगवादनमें पराजित किया। तोयद्वीप पहुंचकर उसने वृक्षपर लटकती हुई कितनी ही कन्याओंका उद्धार किया। वहाँसे वह पाण्ड्यदेश पहुंचा। अन्तमें उसने त्रिभुवनतिलकद्वीपके मण्डलिक राजाकी सुकन्या लक्ष्मी प्रबुद्धाचार्य एवं परमारापोषकाचार्य : १७३
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy