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________________ . श्री पण्डित नाथूरामजी प्रेमीका अनुमान है कि मल्लिषेणका मठ भी इसी स्थानमें रहा होगा । आचार्य वादिराजने 'न्यायविनिश्चयविवरण' की अन्तिम प्रशस्ति में नरेन्द्रसेनका उल्लेख किया है और वादिराजका समय शक सं० ९४५ ( ई० सन् १०२५ ) है | ये नरेन्द्रसेन ही मल्लिषेण द्वारा गुरुरूपमें उल्लिखित हैं । अतः मल्लिषेणको वादिराजके समकालीन माना जा सकता है। मल्लिपेणके महापुराणको रचना वादिराजके २२ वर्षके अनन्तर ही हुई है । अतएव मल्लिषेण का समय ई० सन्की ११वीं शताब्दी है । रचनाएँ उभयभाषाकविचक्रवर्ती भल्लिषेणको निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं १. नागकुमा रकाव्य, २. महापुराण, ३. भैरवपद्मावतीकल्प, ४. सरस्वती मन्त्रकल्प, ५. ज्वालिनीकल्प, ६. कामचाण्डालीकल्प | नागकुमार काव्य इस खण्डकाव्य में ५ सर्ग और ५०७ पद्य हैं । इस काव्य में नागकुमारका जीवन वर्णित है । काव्यके आरम्भमें बताया है कि जयदेव आदि कवियोंने गद्यपद्यमय रचनाएँ लिखी हैं, पर वह मन्दबुद्धिके लिए विषम है। में मल्लिषेण विद्वज्जनोंके मनको हरण करनेवाली उसी कथाको संस्कृत पद्योंमें निबद्ध करता हूँ 1 यथा कविभिर्जयदेवाद्यैः गद्यपद्येविनिर्मितम् । यत्तदेवास्ति चेदत्र विषमं मन्दमेधसाम् || प्रसिद्ध संस्कृतैर्वाक्यचिद्वज्जनमनोहम् I तन्मया पद्यबन्धेन मल्लिषेणेन रच्यते ॥ यह काव्य बहुत सरल, सरस और प्रवाहमय है । मानवीय सहृदयताका भाण्डार खुला हुआ है । जीवनको अन्तः चेतना तथा सौन्दर्य - भावना सत्यकी ओर अग्रसर करती है । घटना - वर्णन और दृश्य-योजनाके अतिरिक्त कविने नागकुमारका संघर्षपूर्ण जीवन चित्रित कर सांसारिकतासे निर्वाणकी ओर गतिशील होनेकी प्रेरणा दी है । काव्यमें मानवीय भावनाओंका चित्रण भी १. महापुराण, पद्म २ प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : १७१
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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