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________________ वृद्ध-सेवा करनेसे कायरूपी अग्नि शान्त हो जाती है और राग-द्व ेषके उपशमसे चित्त प्रसन्न होता है। इस सर्गमें सत्संगतिका महत्त्व भी बतलाया गया है । षोडस मर्ग में ४२ पद्य हैं और परिग्रहत्यागमहाव्रतका वर्णन आया है । इस में २४ प्रकारके परिग्रहोंकी आसक्तिका दोष दिखलाया गया है। सप्तदश सर्गमं २१ पद्यों द्वारा आशाकी निन्दा की गयी है । १८वें सर्गमं ३५ पद्म हैं और इनमें पञ्चसमितियोंका वर्णन आया है । एकोन्नविंशसर्ग में ७७ पद्यों द्वारा कषायकी निन्दा की गयी है— क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चारों कपायें रत्नत्रयगुणको विकृत करती हैं और प्राणीको शान्त नहीं रहने देतीं। बीसवं सर्गमें ३८ पद्यों द्वारा इन्द्रियोंको वश करनेकी प्रशंसा की गयी है । यतः इन्द्रियोंको जोते बिना कथायोंपर विजय नहीं की जा सकती है | अतएव क्रोधादि कपायोंको जीतने के लिए इन्द्रियविजय आवश्यक है । २१वें सर्गमें २७ पद्म हैं और बहुत-सा गद्यांश भी आया है । इसमें वितत्त्वका वर्णन है । यह योगका प्रकरण है । इसमें पृथ्वीतत्त्व, जलतत्त्व और अग्नितत्त्व तथा वायुतत्त्वका विस्तारपूर्वक वर्णन आया है । २खें सर्गमें ३५ पद्म हैं और कुछ गद्यांश भी है । इसमें मनके व्यापारको रोकनेके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार धारणा ध्यन और का भी कमान आया है । २३वें सर्गमें ३८ पद्य हैं। इसमें राग-द्वेषको रोकनेका विधान वर्णित है । २४वें सर्गमें ३३ पद्य है और साम्यभावका निरूपण आया है। राग-द्वेष मोहके अभावसे समताभाव उत्पन्न होता है, जिससे तृण, कञ्चन, शत्रु, मित्र, निन्दा, प्रशंसा, वन-नगर, सुख-सुखं जीवन-मरण इत्यादि पदार्थों में इष्ट-अनिष्ट बुद्धि और ममत्व नहीं होता है । २५वें सर्गमें ४३ पद्य हैं और आर्त्तध्यानका विस्तारपूर्वक निरूपण आया है । २६ वें सर्गमें ४४ पद्य हैं और रौद्रध्यानका निरूपण किया गया है । रौद्रध्यानके हिसानन्द, भूषानन्द चौर्यानन्द और संरक्षणानन्द ये चार भेद बतलाये हैं । २७वें सर्गमें ३४ पद्योंमें ध्यानके विरुद्ध स्थानका चित्रण किया गया है । ध्यानको वृद्धिंगत करनेवाली मैत्री, करुणा, प्रमोद और मध्यस्थ्य इन चारों भावनाओंका निरूपण किया गया है तथा ध्यानमें बाधा करनेवाले स्थानोंका भी निरूपण किया है । २८वें सर्गमें ४० पद्य हैं और इनमें आसनका विधान किया है। आसन के लिए काष्ठ, शिला, भूमि एवं बालुकामय प्रदेश उपयुक्त बताये गये हैं । ध्यानके योग्य आसनों में पर्यकआसन, अर्द्धपर्यकआसन, ब्रजासन, वीरासन, सुखासन, कमलासन एवं कायोत्सर्ग आसनको गणना की है । २९वें सर्गमें १०२ पद्य हैं और प्राणायामका वर्णन है । प्राणायामसे जगतके १६० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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